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अव॑र्त्या॒ शुन॑ आ॒न्त्राणि॑ पेचे॒ न दे॒वेषु॑ विविदे मर्डि॒तार॑म्। अप॑श्यं जा॒यामम॑हीयमाना॒मधा॑ मे श्ये॒नो मध्वा ज॑भार ॥१३॥

English Transliteration

avartyā śuna āntrāṇi pece na deveṣu vivide marḍitāram | apaśyaṁ jāyām amahīyamānām adhā me śyeno madhv ā jabhāra ||

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Pad Path

अव॑र्त्या। शुनः॑। आ॒न्त्राणि॑। पे॒चे॒। न। दे॒वेषु॑। वि॒वि॒दे॒। म॒र्डि॒तार॑म्। अप॑श्यम्। जा॒याम्। अम॑हीयमानाम्। अध॑। मे॒। श्ये॒नः। मधु॑। आ। ज॒भा॒र॒ ॥१३॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:18» Mantra:13 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:26» Mantra:8 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जो (मे) मेरी (अमहीयमानाम्) नहीं सत्कार की गई (जायाम्) स्त्री को (श्येनः) वाज पक्षी के सदृश शीघ्र चलनेवाला सब ओर से (आ, जभार) हरता है (अधा) इसके अनन्तर (शुनः) कुत्ते की (अवर्त्या) नहीं वर्त्तने योग्य (आन्त्राणि) और उठे हैं हाड़ जिनसे उन स्थूल नाड़ियों के सदृश शरीर को (पेचे) पचाता है, इससे (मर्डितारम्) सुख करनेवाले आपका मैं (अपश्यम्) दर्शन करूँ। वह जैसे (देवेषु) विद्वानों में (मधु) मधुर विज्ञान को (न) नहीं (विविदे) प्राप्त होता है, वैसे उसको निरन्तर दण्ड दीजिये ॥१३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जो पुरुष और स्त्रियाँ व्यभिचार करें, उनको तीव्र दण्ड देकर नाश करो ॥१३॥ इस सूक्त में इन्द्र, मेघ, राजा और विद्वान् के कृत्य वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥१३॥ यह तृतीय अष्टक में पाँचवाँ अध्याय अठारहवाँ सूक्त और छब्बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजविषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! यो मेऽमहीयमानां जायां श्येन इवाऽऽजभाराऽधा शुनोऽवर्त्याऽऽन्त्राणीव शरीरं पेचे तस्मान्मर्डितारं त्वामहमपश्यं स यथा देवेषु मधु न विविदे तथा तं भृशं दण्डय ॥१३॥

Word-Meaning: - (अवर्त्या) अवर्त्तनीयानि (शुनः) कुक्कुरस्येव (आन्त्राणि) उदरस्थाः स्थूला नाडी (पेचे) पचति (न) (देवेषु) विद्वत्सु (विविदे) लभते (मर्डितारम्) सुखकरम् (अपश्यम्) पश्येयम् (जायाम्) स्त्रियम् (अमहीयमानाम्) असत्कृताम् (अधा) निपातस्य चेति दीर्घः। (मे) मम (श्येनः) श्येन इव शीघ्रगन्ता (मधु) मधुरं विज्ञानम् (आ) सर्वतः (जभार) हरति ॥१३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! ये पुरुषा याः स्त्रियश्च व्यभिचारं कुर्युस्तांस्तीव्रं दण्डं नीत्वा विनाशय ॥१३॥ अत्रेन्द्रमेघराजविद्वत्कृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥१३॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्येण दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचिते संस्कृतार्यभाषाभ्यां विभूषिते सुप्रमाणयुक्त ऋग्वेदभाष्ये तृतीयाष्टके पञ्चमोऽध्यायोऽष्टादशं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! जे पुरुष व स्त्रिया व्यभिचार करतात त्यांना कठोर दंड देऊन त्यांचा नाश करा. ॥ १३ ॥