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गृ॒ष्टिः स॑सूव॒ स्थवि॑रं तवा॒गाम॑नाधृ॒ष्यं वृ॑ष॒भं तुम्र॒मिन्द्र॑म्। अरी॑ळ्हं व॒त्सं च॒रथा॑य मा॒ता स्व॒यं गा॒तुं त॒न्व॑ इ॒च्छमा॑नम् ॥१०॥

English Transliteration

gṛṣṭiḥ sasūva sthaviraṁ tavāgām anādhṛṣyaṁ vṛṣabhaṁ tumram indram | arīḻhaṁ vatsaṁ carathāya mātā svayaṁ gātuṁ tanva icchamānam ||

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Pad Path

गृ॒ष्टिः। स॒सू॒व॒। स्थवि॑रम्। त॒वा॒गाम्। अ॒ना॒धृ॒ष्यम्। वृ॒ष॒भम्। तुम्र॑म्। इन्द्र॑म्। अरी॑ळ्हम्। व॒त्सम्। च॒रथा॑य। मा॒ता। स्व॒यम्। गा॒तुम्। त॒न्वे॑। इ॒च्छमा॑नम् ॥१०॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:18» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:26» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे बहुधनयुक्त राजन् ! जैसे (गृष्टिः) एक वार प्रसूता हुई गौ (माता) माता (चरथाय) चरने के लिये (वत्सम्) बछड़े के सदृश (स्थविरम्) स्थूल वा वृद्ध (तवागाम्) बल को प्राप्त (अनाधृष्यम्) प्रगल्भ (तुम्रम्) उत्तम कर्म्मों में प्रेरणा करने और (वृषभम्) बैल के सदृश बलिष्ठ (अरीळ्हम्) शत्रुओं के नाश करनेवाले (स्वयम्) आप (गातुम्) वाणी (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यवान् सुत की (इच्छमानम्) इच्छा करते हुए को (ससूव) उत्पन्न करती है, वैसे मैं आपके लिये पृथ्वी के राज्य का (तन्वे) विस्तार करूँ ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जैसे उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त किये हुए अन्न आदि का समय पर नियमित भोजन किया गया शरीर को पुष्ट कर बल को बढ़ाय शत्रुओं का विजयनिमित्तक हो राज्य को बढ़ाता है, वैसे ही आप न्याय से हम लोगों के सुख की वृद्धि करो ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मघवन् राजन् ! यथा गृष्टिश्चरथाय वत्समिव माता स्थविरं तवागामनाधृष्यं तुम्रं वृषभमिवाऽरीळ्हं स्वयं गातुं पृथिवीमिच्छमानमिन्द्रं ससूव तथाहं त्वदर्थं भूमिराज्यं तन्वे ॥१०॥

Word-Meaning: - (गृष्टिः) सकृत् प्रसूता गौः (ससूव) जनयति (स्थविरम्) स्थूलं वृद्धं वा (तवागाम्) प्राप्तबलम् (अनाधृष्यम्) प्रगल्भम् (वृषभम्) वृषभ इव बलिष्ठम् (तुम्रम्) सत्कर्मसु प्रेरकम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तम् (अरीळ्हम्) शत्रूणां हन्तारम् (वत्सम्) (चरथाय) (माता) (स्वयम्) (गातुम्) वाणीम् (तन्वे) विस्तृणुयाम् (इच्छमानम्) ॥१०॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! यथा सुसंस्कृताऽन्नादेः समये समये मिताहारः कृतः शरीरं पुष्टं कृत्वा बलं वर्धयित्वा शत्रुविजयनिमित्तं भूत्वा राज्यं वर्धयति तथैव त्वं न्यायेनाऽस्माकं वर्धय ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! जसे उत्तम प्रकारे संस्कारित केलेले अन्न मिताहार करून नियमितपणे शरीराला पुष्ट करून, बल वाढवून शत्रूंवर विजय प्राप्त करून राज्य वाढविते, तसेच तू न्यायाने आम्हाला वाढव व सुख दे. ॥ १० ॥