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स्व१॒॑र्यद्वेदि॑ सु॒दृशी॑कम॒र्कैर्महि॒ ज्योती॑ रुरुचु॒र्यद्ध॒ वस्तोः॑। अ॒न्धा तमां॑सि॒ दुधि॑ता वि॒चक्षे॒ नृभ्य॑श्चकार॒ नृत॑मो अ॒भिष्टौ॑ ॥४॥

English Transliteration

svar yad vedi sudṛśīkam arkair mahi jyotī rurucur yad dha vastoḥ | andhā tamāṁsi dudhitā vicakṣe nṛbhyaś cakāra nṛtamo abhiṣṭau ||

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Pad Path

स्वः॑। यत्। वेदि॑। सु॒ऽदृशी॑कम्। अ॒र्कैः। महि॑। ज्योतिः॑। रु॒रु॒चुः॒। यत्। ह॒। वस्तोः॑। अ॒न्धा। तमां॑सि। दुधि॑ता। वि॒ऽचक्षे॑। नृऽभ्यः॑। च॒का॒र॒। नृ॒ऽत॑मः। अ॒भिष्टौ॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:16» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:17» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (सुदृशीकम्) उत्तम प्रकार देखने योग्य (महि) बड़ा (ज्योतिः) प्रकाशमय (स्वः) सुख (वेदि) जाना जाता है (यत्) जो (ह) निश्चय (वस्तोः) दिन को किरणें (रुरुचुः) प्रकाशित करते हैं और जिनसे सूर्य्य (अन्धा) अन्धकाररूप (तमांसि) रात्रियों को (दुधिता) दूर की हुई (विचक्षे) प्रकाशित करता है, तिससे जो (नृतमः) अत्यन्त नायक (अभिष्टौ) चारों ओर से सङ्गत कर्म्म में (अर्कैः) विचारों से (नृम्यः) नायक मनुष्यों के लिये सुख को (चकार) करता है, वही सब लोगों के सत्कार करने योग्य होता है ॥४॥
Connotation: - नित्य नीति और वीरता से अच्छे प्रकार बढ़े हुए राज्यकर्म्म में राजा और प्रजाओं में सब ओर से सुख प्रतिदिन सूर्यप्रकाश के समान बढ़ता है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यत्सुदृशीकं महि ज्योतिस्स्वर्वेदि यद्ध वस्तोः किरणा रुरुचुयस्सूर्य्योऽन्धा तमांसि दुधिता विचक्षे तेन यो नृतमोऽभिष्टावर्कैर्नृभ्यः स्वश्चकार स एव सर्वैः सत्कर्त्तव्यो भवति ॥४॥

Word-Meaning: - (स्वः) सुखम् (यत्) (वेदि) विज्ञायते (सुदृशीकम्) सुष्ठु द्रष्टुं योग्यम् (अर्कैः) मन्त्रैर्विचारैः (महि) महत् (ज्योतिः) प्रकाशमयम् (रुरुचुः) रोचन्ते (यत्) (ह) (वस्तोः) दिनम् (अन्धा) अन्धकाररूपाणि (तमांसि) रात्रीः (दुधिता) दुधितानि दुर्हितानि (विचक्षे) प्रकाशयति (नृभ्यः) नायकेभ्यो मनुष्येभ्यः (चकार) करोति (नृतमः) अतिशयेन नायकः (अभिष्टौ) अभितः सङ्गते कर्मणि ॥४॥
Connotation: - नित्यं नीतिवीरताभ्यां सम्वर्द्धितराज्यकर्म्मणि राजप्रजाजनेषु सर्वतः सुखं प्रतिदिनं सूर्य्यप्रकाश इव वर्द्धते ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - नित्य नीती व वीरता यामुळे राज्यकर्मात राजा व प्रजा यांच्यामध्ये प्रतिदिवशी सगळीकडून सूर्यप्रकाशाप्रमाणे सुख वाढते. ॥ ४ ॥