क॒विर्न नि॒ण्यं वि॒दथा॑नि॒ साध॒न्वृषा॒ यत्सेकं॑ विपिपा॒नो अर्चा॑त्। दि॒व इ॒त्था जी॑जनत्स॒प्त का॒रूनह्ना॑ चिच्चक्रुर्व॒युना॑ गृ॒णन्तः॑ ॥३॥
kavir na niṇyaṁ vidathāni sādhan vṛṣā yat sekaṁ vipipāno arcāt | diva itthā jījanat sapta kārūn ahnā cic cakrur vayunā gṛṇantaḥ ||
क॒विः। न। नि॒ण्यम्। वि॒दथा॑नि। साध॑न्। वृषा॑। यत्। सेक॑म्। वि॒ऽपि॒पा॒नः। अर्चा॑त्। दि॒वः। इ॒त्था। जी॒ज॒न॒त्। स॒प्त। का॒रून्। अह्ना॑। चि॒त्। च॒क्रुः॒। व॒युना॑। गृ॒णन्तः॑ ॥३॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ विद्वद्विषयमाह ॥
गृणन्तो विद्वांसोऽह्ना वयुना चक्रुः सप्त कारूञ्चिच्चक्रुरित्था यद्यो वृषा सेकं विपिपानो विदथानि साधन् दिवोऽर्चात् स निण्यं दिवः कविर्न जीजनत् ॥३॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A