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इन्द्रं॒ कामा॑ वसू॒यन्तो॑ अग्म॒न्त्स्व॑र्मीळ्हे॒ न सव॑ने चका॒नाः। श्र॒व॒स्यवः॑ शशमा॒नास॑ उ॒क्थैरोको॒ न र॒ण्वा सु॒दृशी॑व पु॒ष्टिः ॥१५॥

English Transliteration

indraṁ kāmā vasūyanto agman svarmīḻhe na savane cakānāḥ | śravasyavaḥ śaśamānāsa ukthair oko na raṇvā sudṛśīva puṣṭiḥ ||

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Pad Path

इन्द्र॑म्। कामाः॑। व॒सु॒ऽयन्तः॑। अ॒ग्म॒न्। स्वः॑ऽमीळ्हे। न। सव॑ने। च॒का॒नाः। श्र॒व॒स्यवः॑। श॒श॒मा॒नासः॑। उ॒क्थैः। ओकः॑। न। र॒ण्वा। सु॒दृशी॑ऽइव। पु॒ष्टिः ॥१५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:16» Mantra:15 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजविषय में सेना और अमात्य आदिकों की योग्यता के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जो (वसूयन्तः) अपने को धनों की इच्छा करते हुए (कामाः) कामना करनेवाले (सवने) प्रेरणा करने में (चकानाः) प्रकाशमान (श्रवस्यवः) अपने को अन्न की इच्छा करते हुए (शशमानासः) शत्रुओं के बल का उल्लङ्घन करनेवाले (उक्थैः) प्रशंसित गुणों से (ओकः) गृह के (न) सदृश (स्वर्मीळ्हे) जैसे सुख से युक्त संग्राम में (न) वैसे जो (सुदृशीव) उत्तम प्रकार देखने के योग्य सी (रण्वा) सुन्दर (पुष्टिः) पुष्टि उसको (अग्मन्) प्राप्त होते हैं, उसको प्राप्त होकर (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाले को और उन पूर्वोक्त जनों को आप सेना और राज्य के कर्मचारी करिये ॥१५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो धन की कामनावाले होवें, वे शरीर और आत्मा के बल को बढ़ाके युद्ध की विद्या और सामग्री पूर्ण करें ॥१५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजविषये सेनामात्यादियोग्यताविषयं चाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! ये वसूयन्तः कामाः सवने चकानाः श्रवस्यवः शशमानास उक्थैरोको न स्वर्मीळ्हे न या सुदृशीव रण्वा पुष्टिस्तामग्मन्। तां प्राप्येन्द्रं तांस्त्वं सेनाराज्यकर्माचारिणः कुरु ॥१५॥

Word-Meaning: - (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यम् (कामाः) ये कामयन्ते (वसूयन्तः) आत्मनो वसूनि धनानीच्छन्तः (अग्मन्) प्राप्नुवन्ति (स्वर्मीळ्हे) स्वः सुखेन युक्ते सङ्ग्रामे। मीळ्ह इति सङ्ग्रामनामसु पठितम्। (निघं०२.१७) (न) इव (सवने) प्रेरणे (चकानाः) देदीप्यमानाः (श्रवस्यवः) आत्मनः श्रवोऽन्नमिच्छन्तः (शशमानासः) शत्रुबलस्योल्लङ्घकाः (उक्थैः) प्रशंसितैर्गुणैः (ओकः) गृहम् (न) इव (रण्वा) रमणीया (सुदृशीव) सुष्ठु द्रष्टुं योग्येव (पुष्टिः) ॥१५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये धनकामाः स्युस्ते शरीरात्मबलं वर्धयित्वा युद्धस्य विद्यासामग्र्यौ पूर्णे कुर्वन्तु ॥१५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे धनाची इच्छा करणारे असतात त्यांनी शरीर व आत्मा यांचे बल वाढवून युद्धविद्या व सामग्री तयार ठेवावी. ॥ १५ ॥