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ऊ॒र्ध्वं के॒तुं स॑वि॒ता दे॒वो अ॑श्रे॒ज्ज्योति॒र्विश्व॑स्मै॒ भुव॑नाय कृ॒ण्वन्। आप्रा॒ द्यावा॑पृथि॒वी अ॒न्तरि॑क्षं॒ वि सूर्यो॑ र॒श्मिभि॒श्चेकि॑तानः ॥२॥

English Transliteration

ūrdhvaṁ ketuṁ savitā devo aśrej jyotir viśvasmai bhuvanāya kṛṇvan | āprā dyāvāpṛthivī antarikṣaṁ vi sūryo raśmibhiś cekitānaḥ ||

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Pad Path

ऊ॒र्ध्वम्। के॒तुम्। स॒वि॒ता। दे॒वः। अ॒श्रे॒त्। ज्योतिः॑। विश्व॑स्मै। भुव॑नाय। कृ॒ण्वन्। आ। अ॒प्राः॒। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। अ॒न्तरि॑क्षम्। वि। सूर्यः॑। र॒श्मिऽभिः॑। चेकि॑तानः ॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:14» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:14» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वान् के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (देवः) विद्वान् जैसे (सविता) सूर्य्य (रश्मिभिः) किरणों से (चेकितानः) जनाता हुआ (सूर्य्यः) प्रकाशमान (विश्वस्मै) सब (भुवनाय) संसार के लिये (ज्योतिः) प्रकाश को (कृण्वन्) करता हुआ (द्यावापृथिवी) प्रकाश-भूमि (अन्तरिक्षम्) आकाश को (वि, आ, अप्राः) व्याप्त होता है, वैसे (ऊर्ध्वम्) उत्तम (केतुम्) ) बुद्धि का (अश्रेत्) आश्रय करे, वही पूर्ण सुखवाला होवे ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्वान् लोग सम्पूर्ण विद्याओं को पढ़कर, ब्रह्मचर्य और योगाभ्यास से ज्ञान को प्राप्त होकर, किरणों से सूर्य्य के सदृश जनों के अन्तःकरणों को उपदेश से उज्ज्वल करते हैं, वे ही सब को सत्कार करने योग्य होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्गुणानाह ॥

Anvay:

यो देवो विद्वान् यथा सविता रश्मिभिश्चेकितानः सूर्य्यो विश्वस्मै भुवनाय ज्योतिः कृण्वन् द्यावापृथिवी अन्तरिक्षं व्याप्रास्तथोर्ध्वं केतुमश्रेत् स एवालं सुखी जायते ॥२॥

Word-Meaning: - (ऊर्ध्वम्) उत्कृष्टम् (केतुम्) प्रज्ञाम् (सविता) सूर्य्य इव (देवः) विद्वान् (अश्रेत्) (ज्योतिः) प्रकाशम् (विश्वस्मै) सर्वस्मै (भुवनाय) संसाराय (कृण्वन्) कुर्वन् (आ) (अप्राः) व्याप्नोति (द्यावापृथिवी) प्रकाशभूमी (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (वि) (सूर्य्यः) प्रकाशमयः (रश्मिभिः) (चेकितानः) प्रज्ञापयन् ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विद्वांसोऽखिला विद्या अधीत्य ब्रह्मचर्य्य-योगाभ्यासाभ्यां प्रमां प्राप्य रश्मिभिस्सूर्य्य इव जनान्तःकरणाण्युपदेशेनोज्ज्वलयन्ति त एव सर्वेषां पूज्या भवन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्वान संपूर्ण विद्या शिकून ब्रह्मचर्य व योगाभ्यासाने ज्ञान प्राप्त करून सूर्याच्या प्रकाशकिरणांप्रमाणे लोकांच्या अंतःकरणांना उज्ज्वल करतात, तेच सर्वांनी सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ २ ॥