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ऊ॒र्ध्वं भा॒नुं स॑वि॒ता दे॒वो अ॑श्रेद्द्र॒प्सं दवि॑ध्वद्गवि॒षो न सत्वा॑। अनु॑ व्र॒तं वरु॑णो यन्ति मि॒त्रो यत्सूर्यं॑ दि॒व्या॑रो॒हय॑न्ति ॥२॥

English Transliteration

ūrdhvam bhānuṁ savitā devo aśred drapsaṁ davidhvad gaviṣo na satvā | anu vrataṁ varuṇo yanti mitro yat sūryaṁ divy ārohayanti ||

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Pad Path

ऊ॒र्ध्वम्। भा॒नुम्। स॒वि॒ता। दे॒वः। अ॒श्रे॒त्। द्र॒प्सम्। दवि॑ध्वत्। गो॒ऽइ॒षः। न। सत्वा॑। अनु॑। व्र॒तम्। वरु॑णः। य॒न्ति॒। मि॒त्रः। यत्। सूर्य॑म्। दि॒वि। आ॒ऽरो॒हय॑न्ति ॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:13» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:13» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सूर्यलोकादिकों के निमित्तकारण को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (सविता) सूर्य्यमण्डल (देवः) प्रकाशमान (सत्वा) चलनेवाला (गविषः) गौओं को प्राप्त होने की इच्छा करते हुए के (न) सदृश (अनु, व्रतम्) अनुकूल कर्म को और (वरुणः) जल और (मित्रः) वायु अनुकूल कर्म को (यन्ति) प्राप्त होते वा (यत्) जिस (सूर्य्यम्) सूर्य्यलोक को (दिवि) अन्तरिक्ष में (आरोहयन्ति) चढ़ाते हैं वा सूर्य्यमण्डल (द्रप्सम्) पृथिवीसंबन्धी भूलोक को (दविध्वत्) अत्यन्त कँपाता हुआ (ऊर्ध्वम्) ऊपर वर्त्तमान (भानुम्) किरण का (अश्रेत्) आश्रय करता है, यह सब जानो ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । इस सृष्टि में परमात्मा ने जैसे सूर्य्य की उत्पत्ति से जल, अग्नि और पवन रचे, वैसे ही पृथिवी आदिकों के भी निमित्तकारण रचे, यह जानना चाहिये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्यलोकादीनां निमित्तकारणमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यः सविता देवः सत्वा गविषो नाऽनुव्रतं वरुणो मित्रोऽनुव्रतं यन्ति यत्सूर्यं दिव्यारोहयन्ति सविता देवो द्रप्सं दविध्वत् सन्नूर्ध्वं भानुमश्रेदिति विजानीत ॥२॥

Word-Meaning: - (ऊर्ध्वम्) उपरिस्थम् (भानुम्) किरणम् (सविता) सूर्य्यमण्डलम् (देवः) प्रकाशमानः (अश्रेत्) आश्रयति (द्रप्सम्) पार्थिवं भूगोलम् (दविध्वत्) भृशं धुन्वन् (गविषः) गाः प्राप्तुमिच्छन् (न) इव (सत्वा) गन्ता (अनु) (व्रतम्) कर्म (वरुणः) जलम् (यन्ति) (मित्रः) वायुः (यत्) यम् (सूर्य्यम्) सवितृलोकम् (दिवि) (आरोहयन्ति) ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । इह सृष्टौ परमात्मना यथा सूर्य्योत्पत्तेर्जलाग्निवायवो निर्मितास्तथैव पृथिव्यादीनामपि निमित्तानि विहितानीति वेदितव्यम् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. या सृष्टीत परमेश्वराने जसे सूर्याच्या उत्पत्तीपासून जल, अग्नी, पवन निर्माण केलेले आहेत, तसेच पृथ्वी इत्यादींचेही निमित्तकारण उत्पन्न केलेले आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥ २ ॥