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त्वाम॑ग्ने प्रथ॒मं दे॑व॒यन्तो॑ दे॒वं मर्ता॑ अमृत म॒न्द्रजि॑ह्वम्। द्वे॒षो॒युत॒मा वि॑वासन्ति धी॒भिर्दमू॑नसं गृ॒हप॑ति॒ममू॑रम् ॥५॥

English Transliteration

tvām agne prathamaṁ devayanto devam martā amṛta mandrajihvam | dveṣoyutam ā vivāsanti dhībhir damūnasaṁ gṛhapatim amūram ||

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Pad Path

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। प्र॒थ॒मम्। दे॒व॒ऽयन्तः॑। दे॒वम्। मर्ताः॑। अ॒मृ॒त॒। म॒न्द्रऽजि॑ह्वम्। द्वे॒षः॒युत॑म्। आ। वि॒वा॒स॒न्ति॒। धी॒भिः। दमू॑ऽनसम्। गृ॒हऽप॑तिम्। अमू॑रम् ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:11» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:11» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अग्नि के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अमृत) अपने आत्मस्वरूप से नाशरहित (अग्ने) अत्यन्त विद्वान् ! जो लोग (धीभिः) कर्मों वा बुद्धियों से (मन्द्रजिह्वम्) आनन्द उत्पन्न करनेवाली वाणीयुक्त (द्वेषोयुतम्) द्वेष आदि कर्मवियुक्त (दमनूसम्) इन्द्रियों को रोकनेवाले (अमूरम्) मूर्खता आदि दोषरहित विद्वान् (प्रथमम्) आदिम (देवम्) सुन्दर (गृहपतिम्) गृह के स्वामी (त्वाम्) आपकी (देवयन्तः) कामना करते हुए (मर्त्ताः) मनुष्य (आ, विवासन्ति) सेवा करते हैं, उनकी आप भी सेवा करो ॥५॥
Connotation: - जो लोग विद्वान् होकर गृहस्थों को बोध करा के, सब के सन्तानों को ब्रह्मचर्य्य से उत्तम शिक्षा और विद्या ग्रहण करा के तथा अविद्या आदि दोषों को दूर करके शम, दम आदि उत्तम गुणों से युक्त करते हैं, वे ही इस संसार में सुन्दर होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरग्निविषयमाह ॥

Anvay:

हे अमृताग्ने ! ये धीभिर्मन्द्रजिह्वं द्वेषोयुतं दमूनसममूरं प्रथमं देवं गृहपतिं त्वां देवयन्तो मर्त्ता आविवासन्ति तांस्त्वमपि सेवस्व ॥५॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) (अग्ने) परमविद्वन् (प्रथमम्) आदिमम् (देवयन्तः) कामयमानाः (देवम्) कमनीयम् (मर्त्ताः) मनुष्याः (अमृत) स्वात्मस्वरूपेण नाशरहित (मन्द्रजिह्वम्) मन्द्रा आनन्दजनिका जिह्वा वाणी यस्य (द्वेषोयुतम्) द्वेषादिभी रहितम् (आ) (विवासन्ति) परिचरन्ति (धीभिः) कर्मभिः प्रज्ञाभिर्वा (दमूनसम्) दमनशीलम् (गृहपतिम्) गृहस्वामिनम् (अमूरम्) मूढतादिदोषरहितं विद्वांसम् ॥५॥
Connotation: - ये विद्वांसो भूत्वा गृहस्थान् बोधयित्वा सर्वेषां सन्तानान् ब्रह्मचर्येण सुशिक्षां विद्यां ग्राहयित्वाऽविद्यादिदोषान् निवार्य्य शमादिशुभगुणान्वितान् कुर्वन्ति त एवात्र कमनीया भवन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक विद्वान बनून गृहस्थांना बोध, सर्वांच्या संतानांना ब्रह्मचर्याने सुशिक्षण व विद्या ग्रहण करवून अविद्या इत्यादी दोष दूर करून शम इत्यादी शुभ गुणांनी युक्त करतात तेच या जगात आनंददायक असतात. ॥ ५ ॥