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त्वद॑ग्ने॒ काव्या॒ त्वन्म॑नी॒षास्त्वदु॒क्था जा॑यन्ते॒ राध्या॑नि। त्वदे॑ति॒ द्रवि॑णं वी॒रपे॑शा इ॒त्थाधि॑ये दा॒शुषे॒ मर्त्या॑य ॥३॥

English Transliteration

tvad agne kāvyā tvan manīṣās tvad ukthā jāyante rādhyāni | tvad eti draviṇaṁ vīrapeśā itthādhiye dāśuṣe martyāya ||

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Pad Path

त्वत्। अ॒ग्ने॒। काव्या॑। त्वत्। म॒नी॒षाः। त्वत्। उ॒क्था। जा॒य॒न्ते॒। राध्या॑नि। त्वत्। ए॒ति॒। द्रवि॑णम्। वी॒रऽपे॑शाः। इ॒त्थाऽधि॑ये। दा॒शुषे॑। मर्त्या॑य ॥३॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:11» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:11» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वन् ! आप (वीरपेशाः) वीर पुरुषों के रूप के सदृश रूपवाले हम लोग (इत्थाधिये) इस प्रकार (त्वत्) आपके समीप से बुद्धियुक्त (दाशुषे) देनेवाले (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (काव्या) कवि विद्वानों के निर्मित किये काव्य (त्वत्) आपके समीप से (मनीषाः) यथार्थज्ञान (त्वत्) आपके समीप से (उक्था) प्रशंसा करने (राध्यानि) और सिद्ध करने योग्य द्रव्य (जायन्ते) प्रसिद्ध होते हैं (त्वत्) आपके समीप से (द्रविणम्) धन (एति) प्राप्त होता है, इससे हम लोग आपकी सेवा करें ॥३॥
Connotation: - हे राजन् ! जो आप विद्वान्, जितेन्द्रिय और न्यायकारी होवें तो आपके अनुकरण से सम्पूर्ण मनुष्य सत्य आचरण में प्रवृत्त हो और ऐश्वर्य्य को प्राप्त होकर सम्पूर्ण प्रजा का हित साध सकें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! वीरपेशा वयमित्थाधिये दाशुषे मर्त्याय त्वत् काव्या त्वन्मनीषास्त्वदुक्था राध्यानि जायन्ते त्वद् द्रविणमेति तस्मात् त्वां वयं भजेम ॥३॥

Word-Meaning: - (त्वत्) तव सकाशात् (अग्ने) विद्वन् (काव्या) कविभिर्विद्वद्भिर्निर्मितानि (त्वत्) (मनीषाः) प्रमाः (त्वत्) (उक्था) प्रशंसनीयानि (जायन्ते) (राध्यानि) संसाधनीयानि (त्वत्) (एति) प्राप्नोति (द्रविणम्) (वीरपेशाः) वीराणां पेशो रूपमिव रूपं येषान्ते (इत्थाधिये) अनेकप्रकारेण धीर्यस्य तस्मै (दाशुषे) दात्रे (मर्त्याय) मनुष्याय ॥३॥
Connotation: - हे राजन् ! यदि त्वं विद्वाञ्जितेन्द्रियो न्यायकारी भवेस्तर्हि त्वदनुकरणेन सर्वे मनुष्याः सत्याचारे प्रवर्त्यैश्वर्य्यं प्राप्य सर्वस्याः प्रजाया हितं साद्धुं शक्नुयुः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जर तू विद्वान जितेन्द्रिय व न्यायकारी बनलास तर तुझ्या अनुकरणाने संपूर्ण माणसे सत्याचरणात प्रवृत्त होऊन ऐश्वर्य प्राप्त करून संपूर्ण प्रजेचे हित साधू शकतात. ॥ ३ ॥