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वि षा॑ह्यग्ने गृण॒ते म॑नी॒षां खं वेप॑सा तुविजात॒ स्तवा॑नः। विश्वे॑भि॒र्यद्वा॒वनः॑ शुक्र दे॒वैस्तन्नो॑ रास्व सुमहो॒ भूरि॒ मन्म॑ ॥२॥

English Transliteration

vi ṣāhy agne gṛṇate manīṣāṁ khaṁ vepasā tuvijāta stavānaḥ | viśvebhir yad vāvanaḥ śukra devais tan no rāsva sumaho bhūri manma ||

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Pad Path

वि। सा॒हि॒। अ॒ग्ने॒। गृ॒ण॒ते। म॒नी॒षाम्। खम्। वेप॑सा। तु॒वि॒ऽजा॒त॒। स्तवा॑नः। विश्वे॑भिः। यत्। व॒वनः॑। शु॒क्र॒। दे॒वैः। तत्। नः॒। रा॒स्व॒। सु॒ऽम॒हः॒। भूरि॑। मन्म॑ ॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:11» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:11» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (तुविजात) बहुतों में प्रसिद्ध (अग्ने) अग्नि के सदृश विद्या से प्रकाशित ! (स्तवानः) स्तुति करनेवाले हुए आप (वेपसा) राज्य के पालन आदि कर्म से (मनीषाम्) मन की नियामक बुद्धि और (खम्) आकाश की (गृणते) स्तुति करनेवाले के लिये (वि) विशेष करके (साहि) कर्मों की समाप्ति करो। हे (शुक्र) शीघ्रता करनेवाले ! (विश्वेभिः) सम्पूर्ण (देवैः) विद्वानों के साथ आप (यत्) जिसे (वावनः) उत्तम प्रकार भजो सेवो (तत्) उस (सुमहः) बहुत बड़े और (भूरि) बहुत (मन्म) विज्ञान को (नः) हम लोगों के लिये (रास्व) दीजिये ॥२॥
Connotation: - हे राजन् ! आप जितेन्द्रिय हो और बुद्धि को प्राप्त होकर कर्म से प्रारम्भ किये हुए कार्य्य को समाप्त करो और सम्पूर्ण विद्वानों के सहित पूर्ण विज्ञान और प्रजाओं के लिये सुख दीजिये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे तुविजाताग्ने ! स्तवानस्त्वं वेपसा मनीषां खं गृणते वि साहि। हे शुक्र ! विश्वेभिर्देवैस्सह त्वं यद्वावनस्तत्सुमहो भूरि मन्म नो रास्व ॥२॥

Word-Meaning: - (वि) विशेषेण (साहि) कर्मसमाप्तिं कुरु (अग्ने) पावकवद्विद्यया प्रकाशिते (गृणते) स्तुवते (मनीषाम्) मनस ईषिणीं प्रज्ञाम् (खम्) आकाशम् (वेपसा) राज्यपालनादिकर्मणा। वेपस इति कर्मनामसु पठितम्। (निघं०२.१) (तुविजात) बहुषु प्रसिद्ध (स्तवानः) स्तावकः सन् (विश्वेभिः) सर्वैः (यत्) (वावनः) सम्भज (शुक्र) आशुकर (देवैः) विद्वद्भिः (तत्) (नः) अस्मभ्यम् (रास्व) देहि (सुमहः) अतिमहत् (भूरि) बहु (मन्म) विज्ञानम् ॥२॥
Connotation: - हे राजँस्त्वं जितेन्द्रियो भूत्वा प्रज्ञां प्राप्य कर्मणारब्धकार्य्यं समाप्तं कुरु। सर्वैर्विद्वद्भिस्सहितः पूर्णविज्ञानं प्रजाभ्यः सुखं प्रयच्छ ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! तू जितेन्द्रिय बनून बुद्धिपूर्वक आरंभलेले कार्य समाप्त कर व संपूर्ण विज्ञान जाणून प्रजेला सुख दे. ॥ २ ॥