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घृ॒तं न पू॒तं त॒नूर॑रे॒पाः शुचि॒ हिर॑ण्यम्। तत्ते॑ रु॒क्मो न रो॑चत स्वधावः ॥६॥

English Transliteration

ghṛtaṁ na pūtaṁ tanūr arepāḥ śuci hiraṇyam | tat te rukmo na rocata svadhāvaḥ ||

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Pad Path

घृ॒तम्। न। पू॒तम्। त॒नूः। अ॒रे॒पाः। शुचि॑। हिर॑ण्यम्। तत्। ते॒। रु॒क्मः। न। रो॒च॒त॒। स्व॒धा॒ऽवः॒॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:10» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:10» Mantra:6 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर प्रजाविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (स्वधावः) बहुत अन्न से युक्त राजन् ! जो (अरेपाः) पाप के आचरण से रहित (ते) आपके राज्य में (रुक्मः) अत्यन्त दिपते हुए के (न) सदृश (रोचत) शोभित होते हैं और जो (शुचि) पवित्र (हिरण्यम्) ज्योति के सदृश सुवर्ण को प्राप्त कराते हैं (तत्) उसको प्राप्त होकर उनके साथ आपका (तनूः) देह (पूतम्) पवित्र (घृतम्) घृत वा जल के (न) सदृश और चिरञ्जीव हो ॥६॥
Connotation: - हे राजन् ! जो सूर्य्य के सदृश तेजस्वी, धनयुक्त, कुलीन, पवित्र, प्रशंसित, अपराधरहित, श्रेष्ठ शरीरयुक्त, विद्या और अवस्था में वृद्ध होवें, वे आपके और आपके राज्य के रक्षक हों और आप इन लोगों की सम्मति से वर्त्तमान होकर अधिक अवस्थायुक्त हूजिये ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः प्रजाविषयमाह ॥

Anvay:

हे स्वधावो राजन् ! येऽरेपास्ते राज्ये रुक्मो न रोचत यच्छुचि हिरण्यं प्रापयन्ति तत्प्राप्यैतैः सह तव तनूः पूतं घृतं न चिरजीविनी भवतु ॥६॥

Word-Meaning: - (घृतम्) घृतमाज्यमुदकं वा (न) इव (पूतम्) पवित्रम् (तनूः) शरीरम् (अरेपाः) पापाचरणरहिताः (शुचि) पवित्रम् (हिरण्यम्) ज्योतिरिव सुवर्णम् (तत्) (ते) तव (रुक्मः) देदीप्यमानः (न) इव (रोचत) रोचन्ते (स्वधावः) स्वधा बह्वन्नं विद्यते यस्य तत्सम्बुद्धौ ॥६॥
Connotation: - हे राजन् ! ये सूर्य्य इव तेजस्विनो धनाढ्याः कुलीनाः पवित्राः प्रशंसिता निरपराधिनो वपुष्मन्तो विद्यावयोवृद्धाः स्युस्ते तव भवतो राज्यस्य च रक्षकाः सन्तु भवानेतेषां सम्मत्या वर्त्तित्वा दीर्घायुर्भवतु ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जे सूर्याप्रमाणे तेजस्वी, श्रीमंत, कुलीन, पवित्र, प्रशंसित, अपराधरहित, बलवान, विद्या व अवस्था यांनी वृद्ध असतील तर ते तुझे व तुझ्या राज्याचे रक्षक असावेत व तू त्यांच्या संमतीने वागून दीर्घायुषी हो. ॥ ६ ॥