अग्ने॒ तम॒द्याश्वं॒ न स्तोमैः॒ क्रतुं॒ न भ॒द्रं हृ॑दि॒स्पृश॑म्। ऋ॒ध्यामा॑ त॒ ओहैः॑ ॥१॥
agne tam adyāśvaṁ na stomaiḥ kratuṁ na bhadraṁ hṛdispṛśam | ṛdhyāmā ta ohaiḥ ||
अग्ने॑। तम्। अ॒द्य। अश्व॑म्। न। स्तोमैः॑। क्रतु॑म्। न। भ॒द्रम्। हृ॒दि॒ऽस्पृश॑म्। ऋ॒ध्याम॑। ते॒। ओहैः॑॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब आठ ऋचावाले दशवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निशब्दार्थविषयक विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथाग्निशब्दार्थविषयकं विद्वद्विषयमाह ॥
हे अग्ने ! वयमोहैः स्तोमैस्तेऽद्याश्वं न क्रतुं न यं हृदिस्पृशं भद्रमृध्याम तं त्वमस्मदर्थमृध्नुहि ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात अग्नी, राजा, मंत्री व प्रजा यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.