Go To Mantra

प्र शर्ध॑ आर्त प्रथ॒मं वि॑प॒न्याँ ऋ॒तस्य॒ योना॑ वृष॒भस्य॑ नी॒ळे। स्पा॒र्हो युवा॑ वपु॒ष्यो॑ वि॒भावा॑ स॒प्त प्रि॒यासो॑ऽजनयन्त॒ वृष्णे॑ ॥१२॥

English Transliteration

pra śardha ārta prathamaṁ vipanyām̐ ṛtasya yonā vṛṣabhasya nīḻe | spārho yuvā vapuṣyo vibhāvā sapta priyāso janayanta vṛṣṇe ||

Mantra Audio
Pad Path

प्र। शर्धः॑। आ॒र्त॒। प्र॒थ॒मम्। वि॒प॒न्या। ऋ॒तस्य। योना॑। वृ॒ष॒भस्य॑। नी॒ळे। स्पा॒र्हः। युवा॑। व॒पु॒ष्यः॑। वि॒भाऽवा॑। स॒प्त। प्रि॒यासः॑। अ॒ज॒न॒य॒न्त॒। वृष्णे॑॥१२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:1» Mantra:12 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:14» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:12


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् पुरुष ! जैसे (वृष्णे) वृष्टि करनेवाले जीव के लिये (सप्त) पाँच प्राण मन और बुद्धि ये सात (प्रियासः) सुन्दर और सेवन करने योग्य (अजनयन्त) उत्पन्न करते हैं, वैसे (ऋतस्य) सत्यकारण के (योना) स्थान में (वृषभस्य) वृष्टि करनेवाले अग्नि के (नीळे) स्थान में (स्पार्हः) अभिलाषा करने योग्य (युवा) युवावस्था को प्राप्त (वपुष्यः) रूपों में श्रेष्ठ और (विभावा) अनेक प्रकार की विद्याओं के प्रकाशयुक्त हुए आप (विपन्या) अनेक प्रकार के व्यवहार में श्रेष्ठ प्रशंसा से (प्रथमम्) पहिले (शर्धः) बल को (प्र, आर्त्त) प्राप्त हूजिये ॥१२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे प्राण और अन्तःकरण कार्य के साधक और प्रिय होते हैं, वैसे ही पुरुषार्थ से कार्य्य और कारण जानकर और परमेश्वर का ज्ञान करके प्रथम अवस्था में शरीर और आत्मा के बल को प्राप्त होकर सुखों को उत्पन्न करो ॥१२॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यथा वृष्णे सप्त प्रियासोऽजनयन्त तथर्त्तस्य योना वृषभस्य नीळे स्पार्हो युवा वपुष्यो विभावा सन् भवान् विपन्या प्रथमं शर्द्धः प्रार्त्त प्राप्नुयाः ॥१२॥

Word-Meaning: - (प्र) (शर्धः) बलम् (आर्त) प्राप्नुयाः (प्रथमम्) आदिमम् (विपन्या) विपने विविधव्यवहारे साध्व्या (ऋतस्य) सत्यस्य कारणस्य (योना) गृहे (वृषभस्य) वर्षकस्याऽग्नेः (नीळे) स्थाने (स्पार्हः) स्पृहणीयः (युवा) प्राप्तयुवावस्था (वपुष्यः) वपुष्षु साधुः (विभावा) विविधविद्याप्रकाशयुक्तः (सप्त) पञ्च प्राणमनोबुद्धिश्च (प्रियासः) कमनीयाः सेवनीयाः (अजनयन्त) जनयन्ति (वृष्णे) वर्षकाय जीवाय ॥१२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यथा प्राणान्तःकरणानि कार्य्यसाधकानि प्रियाणि भवन्ति तथैव पुरुषार्थेन कार्य्यकारणे विदित्वा परमेश्वरं विज्ञाय प्रथमे वयसि शरीरात्मबलं प्राप्य सुखानि जनयत ॥१२॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! जसे प्राण व अंतःकरण कार्याचे साधक व प्रिय असतात, तसेच पुरुषार्थाने कार्य व कारण जाणून व परमेश्वराचे ज्ञान प्राप्त करून प्रथम अवस्थेमध्ये शरीर व आत्मा यांचे बल प्राप्त करून सुख उत्पन्न करा ॥ १२ ॥