ई॒यि॒वांस॒मति॒ स्रिधः॒ शश्व॑ती॒रति॑ स॒श्चतः॑। अन्वी॑मविन्दन्निचि॒रासो॑ अ॒द्रुहो॒ऽप्सु सिं॒हमि॑व श्रि॒तम्॥
īyivāṁsam ati sridhaḥ śaśvatīr ati saścataḥ | anv īm avindan nicirāso adruho psu siṁham iva śritam ||
ई॒यि॒ऽवांस॑म्। अति॑। स्रिधः॑। शश्व॑तीः। अति॑। स॒श्चतः॑। अनु॑। ई॒म्। अ॒वि॒न्द॒न्। नि॒ऽचि॒रासः॑। अ॒द्रुहः॑। अ॒प्ऽसु। सिं॒हम्ऽइ॑व। श्रि॒तम्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर पाखण्डी लोग कैसे दूर होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः पाखण्डिनः कथं दूरीभवन्तीत्याह।
हे मनुष्या अति स्रिधः शश्वतीरति सश्चतो निचिरासोऽद्रुहः प्रजा ईयिवांसमप्सु श्रितं सिंहमिवेमन्वविन्दन् ताः सुखिनीर्यूयं विजानीत ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
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