सखा॑यस्त्वा ववृमहे दे॒वं मर्ता॑स ऊ॒तये॑। अ॒पां नपा॑तं सु॒भगं॑ सु॒दीदि॑तिं सु॒प्रतू॑र्तिमने॒हस॑म्॥
sakhāyas tvā vavṛmahe devam martāsa ūtaye | apāṁ napātaṁ subhagaṁ sudīditiṁ supratūrtim anehasam ||
सखा॑यः। त्वा॒। व॒वृ॒म॒हे॒। दे॒वम्। मर्ता॑सः। ऊ॒तये॑। अ॒पाम्। नपा॑तम्। सु॒ऽभग॑म्। सु॒ऽदीदि॑तिम्। सु॒ऽप्रतू॑र्तिम्। अ॒ने॒हस॑म्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब नव ऋचावाले नवमें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को अहिंसा धर्म का ग्रहण करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ मनुष्यैरहिंसाधर्मो ग्राह्य इत्याह।
हे उपदेशक मर्त्तासः सखायो वयमूतये अपां नपातमनेहसं सुप्रतूर्त्तिं सुदीदितिं सुभगं देवं त्वा ववृमहे ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात अग्नी व माणसे इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.