अ॒ञ्जन्ति॒ त्वाम॑ध्व॒रे दे॑व॒यन्तो॒ वन॑स्पते॒ मधु॑ना॒ दैव्ये॑न। यदू॒र्ध्वस्तिष्ठा॒ द्रवि॑णे॒ह ध॑त्ता॒द्यद्वा॒ क्षयो॑ मा॒तुर॒स्या उ॒पस्थे॑॥
añjanti tvām adhvare devayanto vanaspate madhunā daivyena | yad ūrdhvas tiṣṭhā draviṇeha dhattād yad vā kṣayo mātur asyā upasthe ||
अ॒ञ्जन्ति॑। त्वाम्। अ॒ध्व॒रे। दे॒व॒ऽयन्तः॑। वन॑स्पते। मधु॑ना। दैव्ये॑न। यत्। ऊ॒र्ध्वः। ति॒ष्ठाः॑। द्रवि॑णा। इ॒ह। ध॒त्ता॒त्। यत्। वा॒। क्षयः॑। मा॒तुः। अ॒स्याः। उ॒पऽस्थे॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब तीसरे मण्डल के आठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्य लोग किसकी कामना करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ मनुष्याः केषां कामनां कुर्य्युऽरित्याह।
हे वनस्पते ! मधुना दैव्येन सह वर्त्तमाना देवयन्तो विद्वांसो यद्यं त्वामध्वरे अञ्जन्ति स त्वं येषामूर्ध्वस्तिष्ठा इह द्रविणा वा धत्तादस्या मातुरुपस्थे यत् क्षयोऽस्ति तद्वयमपि गृह्णीयाम ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात विद्वान, वेदपाठी व ब्रह्मचारी यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.