वृ॒षा॒यन्ते॑ म॒हे अत्या॑य पू॒र्वीर्वृष्णे॑ चि॒त्राय॑ र॒श्मयः॑ सुया॒माः। देव॑ होतर्म॒न्द्रत॑रश्चिकि॒त्वान्म॒हो दे॒वान्रोद॑सी॒ एह व॑क्षि॥
vṛṣāyante mahe atyāya pūrvīr vṛṣṇe citrāya raśmayaḥ suyāmāḥ | deva hotar mandrataraś cikitvān maho devān rodasī eha vakṣi ||
वृ॒षा॒ऽयन्ते॑। म॒हे। अत्या॑य। पू॒र्वीः। वृष्णे॑। चि॒त्राय॑। र॒श्मयः॑। सु॒ऽया॒माः। देव॑। हो॒तः॒। म॒न्द्रऽत॑रः। चि॒कि॒त्वान्। म॒हः। दे॒वान्। रोद॑सी॒ इति॑। आ। इ॒ह। व॒क्षि॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर विद्वान् लोग क्या करते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्विद्वांसः किं कुर्वन्तीत्याह।
हे होतर्देव मन्द्रतरश्चिकित्वांस्त्वं यथा सुयामा रश्मयो महेऽत्याय चित्राय वृष्णे विदुषे पूर्वीर्वृषायन्ते रोदसी प्रकटयन्ति तथेह महो देवानावक्षि ॥९॥
MATA SAVITA JOSHI
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