उ॒तो पि॒तृभ्यां॑ प्र॒विदानु॒ घोषं॑ म॒हो म॒हद्भ्या॑मनयन्त शू॒षम्। उ॒क्षा ह॒ यत्र॒ परि॒ धान॑म॒क्तोरनु॒ स्वं धाम॑ जरि॒तुर्व॒वक्ष॑॥
uto pitṛbhyām pravidānu ghoṣam maho mahadbhyām anayanta śūṣam | ukṣā ha yatra pari dhānam aktor anu svaṁ dhāma jaritur vavakṣa ||
उ॒तो इति॑। पि॒तृऽभ्या॑म्। प्र॒ऽविदा॑। अनु॑। घोष॑म्। म॒हः। म॒हत्ऽभ्या॑म्। अ॒न॒य॒न्त॒। शू॒षम्। उ॒क्षा। ह॒। यत्र॑। परि॑। धान॑म्। अ॒क्तोः। अनु॑। स्वम्। धाम॑। ज॒रि॒तुः। व॒वक्ष॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः किं कर्तव्यमित्याह।
हे मनुष्या ये ब्रह्मचारिणो महद्भ्यां मह उतो पितृभ्यां प्रविदा घोषं शूषं चान्वनयन्त यत्रोक्षाऽक्तोः परि धानं जरितुर्ह स्वं धामानु ववक्ष तान् यूयं सत्कुरुत ॥६॥
MATA SAVITA JOSHI
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