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तां जु॑षस्व॒ गिरं॒ मम॑ वाज॒यन्ती॑मवा॒ धिय॑म्। व॒धू॒युरि॑व॒ योष॑णाम्॥

English Transliteration

tāṁ juṣasva giram mama vājayantīm avā dhiyam | vadhūyur iva yoṣaṇām ||

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Pad Path

ताम्। जु॒ष॒स्व॒। गिर॑म्। मम॑। वा॒ज॒ऽयन्ती॑म्। अ॒व॒। धिय॑म्। व॒धू॒युःऽइ॑व। योष॑णाम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:62» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में पठन विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे देव विद्वन् वा राजन् ! आप (ताम्) उस (वाजयन्तीम्) सत्य और असत्य के जनानेवाली (मम) मेरी (गिरम्) सत्यभाषण और शास्त्र के विज्ञान से युक्त वाणी का जैसे (योषणाम्) निज स्त्री को (वधूयुरिव) अपनी स्त्री की इच्छा करनेवाला वैसे (जुषस्व) सेवन और (धियम्) बुद्धि की (अव) रक्षा करो ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्य लोग, जैसे स्त्री की कामना करनेवाले अपनी-अपनी प्रेमपात्र पत्नी की रक्षा और सेवा करते हैं, वैसे ही शास्त्र से युक्त वाणी का सेवन करके बुद्धि की निरन्तर सेवा करैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अध्ययनविषयमाह।

Anvay:

हे देव विद्वन् ! राजन् वा त्वं तां वाजयन्तीं मम गिरं योषणां वधूयुरिव जुषस्व धियञ्चाव ॥८॥

Word-Meaning: - (ताम्) (जुषस्व) सेवस्व (गिरम्) सत्यभाषणशास्त्रविज्ञानयुक्तां वाचम् (मम) (वाजयन्तीम्) सत्याऽसत्यविज्ञापयन्तीम् (अव) रक्ष। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (धियम्) प्रज्ञाम् (वधूयुरिव) आत्मनो वधूमिच्छन्निव (योषणाम्) स्वपत्नीम् ॥८॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्या यथा स्त्रीकामाः स्वां स्वां हृद्यां प्रियां पत्नीं रक्षन्ति सेवन्ते च तथैव शास्त्रान्वितां वाचं सेवित्वा प्रज्ञां सततं रक्षन्तु ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी स्त्रीची कामना करणारे आपापल्या पत्नीचा स्वीकार व रक्षण करतात तसेच शास्त्रयुक्त वाणीचे सेवन करून बुद्धीचे सदैव रक्षण करावे. ॥ ८ ॥