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आ नो॑ मित्रावरुणा घृ॒तैर्गव्यू॑तिमुक्षतम्। मध्वा॒ रजां॑सि सुक्रतू॥

English Transliteration

ā no mitrāvaruṇā ghṛtair gavyūtim ukṣatam | madhvā rajāṁsi sukratū ||

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Pad Path

आ। नः॒। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। घृ॒तैः। गव्यू॑तिम्। उ॒क्ष॒त॒म्। मध्वा॑। रजां॑सि। सु॒क्र॒तू॒ इति॑ सुऽक्रतू॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:62» Mantra:16 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:11» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में अध्यापक और उपदेशक के विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - जो (सुक्रतू) उत्तम बुद्धि वा श्रेष्ठ कर्मवाले (मित्रावरुणा) प्राण और उदान वायु के सदृश अध्यापक और उपदेशक (घृतैः) जल आदिकों से (गव्यूतिम्) दो कोस (रजांसि) लोकों को सिञ्चनेवाले के सदृश (मध्वा) मधुरता से (नः) हमलोगों के लिये (आ, उक्षतम्) सींचनेवाले हैं, उन दोनों को हम लोग प्राणों के सदृश प्रिय मानते हैं ॥१६॥
Connotation: - जो पढ़ाने और उपदेश देनेवाले से उपदेश की गई प्राण अर्थात् पवनसम्बन्धी विद्या को जानकर लोक-लोकान्तर अर्थात् एकदेश से दूसरे देश के व्यवहार से सम्पूर्ण देशों में जाना आना सिद्ध करते हैं, वे जल के सदृश शुद्ध अन्तःकरणवाले जानने योग्य हैं ॥१६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अध्यापकोपदेशकविषयमाह।

Anvay:

यौ सुक्रतू मित्रावरुणा घृतैर्गव्यूतिं रजांसि सिञ्चत इव मध्वा नोऽस्मानोक्षतं तौ वयं प्राणवत्प्रियौ मन्यामहे ॥१६॥

Word-Meaning: - (आ) (नः) अस्मभ्यम् (मित्रावरुणा) प्राणोदानवदध्यापकोपदेशकौ (घृतैः) उदकादिभिः (गव्यूतिम्) क्रोशद्वयम् (उक्षतम्) सिञ्चतम् (मध्वा) माधुर्येण (रजांसि) लोकान् (सूक्रतू) उत्तमप्रज्ञौ सत्कर्माणौ वा ॥१६॥
Connotation: - यावध्यापकोपदेशकोपदिष्टप्राणविद्यां विज्ञाय लोकलोकान्तरव्यवहारेण सर्वदेशेषु गमनागमनौ संसाधयतस्तौ जलवन्निर्मलान्तःकरणौ विज्ञातव्यौ ॥१६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे अध्यापक व उपदेशक यांनी उपदेश केलेली प्राणविद्या अर्थात् वायूविद्या जाणून लोकलोकान्तरी अर्थात् एका देशातून दुसऱ्या देशात जाणे-येणे करतात ते जलाप्रमाणे शुद्ध अंतःकरणयुक्त असतात. ॥ १६ ॥