उषो॑ दे॒व्यम॑र्त्या॒ वि भा॑हि च॒न्द्रर॑था सू॒नृता॑ ई॒रय॑न्ती। आ त्वा॑ वहन्तु सु॒यमा॑सो॒ अश्वा॒ हिर॑ण्यवर्णां पृथु॒पाज॑सो॒ ये॥
uṣo devy amartyā vi bhāhi candrarathā sūnṛtā īrayantī | ā tvā vahantu suyamāso aśvā hiraṇyavarṇām pṛthupājaso ye ||
उषः॑। दे॒वि॒। अम॑र्त्या। वि। भा॒हि॒। च॒न्द्रऽर॑था। सू॒नृताः॑। ई॒रय॑न्ती। आ। त्वा॒। व॒ह॒न्तु॒। सु॒ऽयमा॑सः। अश्वाः॑। हिर॑ण्यऽवर्णाम्। पृ॒थु॒ऽपाज॑सः। ये॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को प्रकारान्तर से अगले मन्त्र में कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयं प्रकारान्तरेणाह।
हे देव्युषर्वत्सूनृताः प्रेरयन्ती चन्द्ररथा अमर्त्या सती विभाहि। ये पृथुपाजसः सुयमासो हिरण्यवर्णामश्वा इव त्वाऽऽवहन्तु तान् सुखेन त्वं विभाहि ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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