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म॒हान्त्स॒धस्थे॑ ध्रु॒व आ निष॑त्तो॒ऽन्तर्द्यावा॒ माहि॑ने॒ हर्य॑माणः। आस्क्रे॑ स॒पत्नी॑ अ॒जरे॒ अमृ॑क्ते सब॒र्दुघे॑ उरुगा॒यस्य॑ धे॒नू॥

English Transliteration

mahān sadhasthe dhruva ā niṣatto ntar dyāvā māhine haryamāṇaḥ | āskre sapatnī ajare amṛkte sabardughe urugāyasya dhenū ||

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Pad Path

म॒हान्। स॒धऽस्थे॑। ध्रु॒वः। आ। निऽस॑त्तः। अ॒न्तः। द्यावा॑। माहि॑ने॒ इति॑। हर्य॑माणः। आस्क्रे॒ इति॑। स॒पत्नी॒ इति॑ स॒ऽपत्नी॑। अ॒जरे॒ इति॑। अमृ॑क्ते॒ इति॑। स॒ब॒र्दुघे॒ इति॑ स॒बः॒ऽदुघे॑। उ॒रु॒ऽगा॒यस्य॑। धे॒नू इति॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:6» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:26» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (महान्) बड़े परिमाणवाला (सधस्थे) समानस्थान में (ध्रुवः) निश्चल (माहिने) महत्त्व के लिये (हर्यमाणः) कामना करता हुआ (द्यावा) आकाश और पृथिवी के (अन्तः) बीच में (आ, निषत्तः) निरन्तर स्थिर अग्नि (आस्क्रे) जिनका आक्रमण करना अर्थात् अनुक्रम से चलना स्वभाव (अजरे) जो जीर्ण अवस्था रहित (अमृक्ते) विकार अवस्था से अशुद्ध (सबर्दुघे) एक से स्वीकार को अच्छे प्रकार पूरे करनेवाली (उरुगायस्य) बहुतों से जो स्तुति को प्राप्त हुआ उसकी (सपत्नी) सपत्नी के समान वर्त्तमान वा (धेनू) दो गौओं के समान पालन करनेवाली हैं उनको व्याप्त होता है वह सबको जानने योग्य है ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो यह सूर्यलोक दीख पड़ता है, वह सबसे बड़ा और अपनी परिधि में निरन्तर वसता हुआ सब भूगोलों को प्रकाशित करता है, जिससे कि दिन-रात्रि होते हैं, उस को जानो ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यो महान्त्सधस्थे ध्रुवो माहिने हर्यमाणो द्यावापृथिव्योऽन्तरानिषत्तोऽग्निरास्क्रे अजरे अमृक्ते सबर्दुघे उरुगायस्य सपत्नी धेनूइव वर्त्तमाने व्याप्नोति स सर्वैर्वेदितव्यः ॥४॥

Word-Meaning: - (महान्) महत्वपरिमाणः (सधस्थे) समानस्थाने (ध्रुवः) निश्चलः (आ) समन्तात् (निषत्तः) निषण्णः (अन्तः) मध्ये (द्यावा) (माहिने) महिम्ने (हर्यमाणः) कमनीयः (आस्क्रे) आक्रमणस्वभावे (सपत्नी) सपत्नी इव वर्त्तमाने (अजरे) जीर्णावस्थारहिते (अमृक्ते) विकारावस्थयाऽशुद्धे (सबर्दुघे) समानस्वीकरणप्रपूरिके (उरुगायस्य) बहुभिः स्तुतस्य (धेनू) धेनुवत्पालिके ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। योऽयं सूर्यलोको दृश्यते स सर्वेभ्यो महान् स्वपरिधौ निवसन् सर्वान् भूगोलान्प्रकाशयति यस्मादहोरात्रे सम्भवतस्तं विजानीत ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो हा सूर्य लोक दृश्यमान आहे तो सर्वात मोठा असून आपल्या परिधीमध्ये निरंतर वसलेला आहे. तो भूगोलांना प्रकाशित करतो. ज्यामुळे दिवस व रात्र होतात हे जाणा. ॥ ४ ॥