अ॒यं मि॒त्रो न॑म॒स्यः॑ सु॒शेवो॒ राजा॑ सुक्ष॒त्रो अ॑जनिष्ट वे॒धाः। तस्य॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिय॒स्यापि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म॥
ayam mitro namasyaḥ suśevo rājā sukṣatro ajaniṣṭa vedhāḥ | tasya vayaṁ sumatau yajñiyasyāpi bhadre saumanase syāma ||
अ॒यम्। मि॒त्रः। न॒म॒स्यः॑। सु॒ऽशेवः॑। राजा॑। सु॒ऽक्ष॒त्रः। अ॒ज॒नि॒ष्ट॒। वे॒धाः। तस्य॑। व॒यम्। सु॒ऽम॒तौ। य॒ज्ञिय॑स्य। अपि॑। भ॒द्रे। सौ॒म॒न॒से। स्या॒म॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
सर्वैर्योऽयं मित्रो सुशेवः सुक्षत्रो राजा वेधा नमस्योऽस्ति यस्य राष्ट्रं सुख्यजनिष्ट तस्य यज्ञियस्य सुमतौ सौमनसे भद्रेऽपि वयं स्याम तथैव सर्वे भवन्तु ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A