आ म॑न्येथा॒मा ग॑तं॒ कच्चि॒देवै॒र्विश्वे॒ जना॑सो अ॒श्विना॑ हवन्ते। इ॒मा हि वां॒ गोऋ॑जीका॒ मधू॑नि॒ प्र मि॒त्रासो॒ न द॒दुरु॒स्रो अग्रे॑॥
ā manyethām ā gataṁ kac cid evair viśve janāso aśvinā havante | imā hi vāṁ goṛjīkā madhūni pra mitrāso na dadur usro agre ||
आ। म॒न्ये॒था॒म्। आ। ग॒त॒म्। कत्। चि॒त्। एवैः॑। विश्वे॑। जना॑सः। अ॒श्विना॑। ह॒व॒न्ते॒। इ॒मा। हि। वा॒म्। गोऽऋ॑जीका। मधू॑नि। प्र। मि॒त्रासः॑। न। द॒दुः। उ॒स्रः। अग्रे॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे अश्विनावध्यापकोपदेशकौ यौ युवां विश्वे जनासो हवन्तेऽग्रे हीमा गोऋजीका मधूनि मित्रासो न प्रददुस्तानुस्रो वामेवैः कदाऽऽगतं चिदपि तानामन्येथाम् ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
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