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त्रिरु॑त्त॒मा दू॒णशा॑ रोच॒नानि॒ त्रयो॑ राज॒न्त्यसु॑रस्य वी॒राः। ऋ॒तावा॑न इषि॒रा दू॒ळभा॑स॒स्त्रिरा दि॒वो वि॒दथे॑ सन्तु दे॒वाः॥

English Transliteration

trir uttamā dūṇaśā rocanāni trayo rājanty asurasya vīrāḥ | ṛtāvāna iṣirā dūḻabhāsas trir ā divo vidathe santu devāḥ ||

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Pad Path

त्रिः। उ॒त्ऽत॒मा दुः॒ऽनशा॑। रो॒च॒नानि॑। त्रयः॑। रा॒ज॒न्ति॒। असु॑रस्य। वी॒राः। ऋ॒तऽवा॑नः। इ॒षि॒राः। दुः॒ऽदभा॑सः। त्रिः। आ। दि॒वः। वि॒दथे॑। स॒न्तु॒। दे॒वाः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:56» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:1» Mantra:8 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - जो ब्रह्म के भक्त (त्रयः) बिजुली प्रसिद्ध अग्नि और सूर्य्याग्नि के सदृश (असुरस्य) दुष्ट और दोषों के दूर करनेवाले के सम्बन्ध में (इषिराः) जानेवाले (ऋतावानः) प्रशंसित सत्य जिनमें विद्यमान तथा (वीराः) विद्या शूरता और बल से परिपूरित वे (दूळभासः) हिंसा से रहित (आ) सब प्रकार (दिवः) कामना करते हुए (देवाः) विद्वान् लोग (विदथे) संग्राम आदि व्यवहार में (त्रिः) तीन बार (सन्तु) प्रसिद्ध हों और (दूणशा) दुःख से जिनका नाश होता है वे (उत्तमा) श्रेष्ठ (रोचनानि) प्रकाशमान (त्रिः) तीन बार (राजन्ति) शोभित होते हैं ॥८॥
Connotation: - जो लोग जगदीश्वर को प्राणों के सदृश प्रिय, राजा के सदृश उपदेशदाता, न्यायाधीश के सदृश नायक, सूर्य के सदृश अपने से प्रकाशमान और सबका प्रकाशकर्त्ता मान निरन्तर भजते हैं, वे ही शत्रुओं के दुःख से जीतने योग्य सत्य के आचरण करने और अन्यों के सुख चाहनेवाले हैं, वे चक्रवर्त्ती राज्य को प्राप्त होकर सूर्य्य के सदृश शोभित होते हैं और वे ही इस संसार में रक्षा के अधिकारी हों ॥८॥ इस सूक्त में ईश्वर, जगत् और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ संगति समझनी चाहिये ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

ये ब्रह्मभक्तास्त्रय इवाऽसुरस्येषिरा ऋतावानो वीरा दूळभास आदिवो देवा विदथे त्रिस्सन्तु ते दूणशोत्तमा रोचनानि त्री राजन्ति ॥८॥

Word-Meaning: - (त्रिः) त्रिवारम् (उत्तमा) उत्तमानि (दूणशा) दुःखेन नशो नाशो येषान्तानि (रोचनानि) प्रकाशमानानि (त्रयः) विद्युत्प्रसिद्धसूर्य्याः (राजन्ति) (असुरस्य) दुष्टान् दोषान्प्रक्षेप्तुः (वीराः) व्याप्तविद्याशौर्यबलाः (ऋतावानः) प्रशंसितमृतं सत्यं विद्यते येषु ते (इषिराः) गन्तारः (दूळभासः) दुर्गतो दभो हिंसा येभ्यस्ते (त्रिः) (आ) (दिवः) कामयमानाः (विदथे) संग्रामादिव्यवहारे (सन्तु) (देवाः) विद्वांसः ॥८॥
Connotation: - ये जगदीश्वरं प्राणवत्प्रियं राजवदादेष्टारं न्यायाधीशवन्नेतारं सूर्य्यवत्सुप्रकाशं सर्वप्रकाशकं सततं भजन्ते त एव शत्रुभिर्दुर्जयाः सत्याचारा अन्येषां सुखं कामयमानाश्चक्रवर्त्तिराज्यं प्राप्य सूर्य्यवद्विराजन्ते त एवात्र रक्षाधिकृता भवन्त्विति ॥८॥ अत्रेश्वरजगद्विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वेद्या ॥ इति षट्पञ्चाशत्तमं सूक्तं प्रथमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक जगदीश्वराला प्राणाहून प्रिय, राजाप्रमाणे उपदेश कर्ता, न्यायाधीशाप्रमाणे नायक, सूर्याप्रमाणे स्वतः प्रकाशमान व सर्वांचा प्रकाशकर्ता मानून निरंतर भजतात तेच शत्रूंच्या दुःखांना जिंकणारे, सत्याचे आचरण करणारे व इतरांचे सुख इच्छिणारे असतात. त्यांना चक्रवर्ती राज्य प्राप्त होते व ते सूर्याप्रमाणे सुशोभित होतात व तेच या जगाचे रक्षणकर्ते असतात. ॥ ८ ॥