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अ॒भीक॑ आसां पद॒वीर॑बोध्यादि॒त्याना॑मह्वे॒ चारु॒ नाम॑। आप॑श्चिदस्मा अरमन्त दे॒वीः पृथ॒ग्व्रज॑न्तीः॒ परि॑ षीमवृञ्जन्॥

English Transliteration

abhīka āsām padavīr abodhy ādityānām ahve cāru nāma | āpaś cid asmā aramanta devīḥ pṛthag vrajantīḥ pari ṣīm avṛñjan ||

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Pad Path

अ॒भीके॑। आ॒सा॒म्। प॒द॒ऽवीः। अ॒बो॒धि॒। आ॒दि॒त्याना॑म्। अ॒ह्वे॒। चारु॑। नाम॑। आपः॑। चि॒त्। अ॒स्मै॒। अ॒र॒म॒न्त॒। दे॒वीः। पृथ॑क्। व्रज॑न्तीः। परि॑। सी॒म्। अ॒वृ॒ञ्ज॒न्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:56» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:1» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी ईश्वर के गुणों का उपदेश अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जिस जगदीश्वर ने (आसाम्) इन अनादि काल से सिद्ध प्रजाओं और (आदित्यानाम्) सूर्य्यादिकों वा मास आदि समय विभागों के (पदवीः) पदों को जो व्याप्त होता वह (अबोधि) जाना हुआ है और जिसका (चारु) अत्यन्त श्रेष्ठ (नाम) नाम जिसमें (चित्) निश्चित (व्रजन्तीः) जाते हुए (देवीः) प्रकाशमान (आपः) प्राण (सीम्) परिग्रह करने में (पृथक्) अलग-अलग (परि, अरमन्त) सब ओर से रमते और (अवृञ्जन्) त्याग करते हैं (अस्मै) इसके लिये (अभीके) कामना करनेवाले में वर्त्तमान मैं इस ईश्वर को (अह्वे) बुलाता हूँ, उसीको आप लोग भी बुलाओ ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या जो सबके सुख की कामना करता है, जिसमें सब जीव और लोकादि पदार्थ पृथक्-पृथक् क्रीड़ा करते ग्रहण करते और त्याग करते हैं, उसको छोड़ के अन्य किसी की भी मत उपासना करो ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरीश्वरगुणानाह।

Anvay:

हे मनुष्या येन जगदीश्वरेणासामादित्यानां च पदवीरबोधि यस्य चारु नाम यस्मिँश्चिद् व्रजन्तीर्देवीरापः सीम् पृथगरमन्त पर्यवृञ्जन्नस्मा अभीके स्थितोऽहमिममह्वे तमेव यूयमप्यह्वायत ॥४॥

Word-Meaning: - (अभीके) कमितरि (आसाम्) सनातनीनां प्रजानाम् (पदवीः) यः पदानि वेति व्याप्नोति (अबोधि) बुध्यताम् (आदित्यानाम्) सूर्यादीनां मासानां वा (अह्वे) आह्वयेयम् (चारु) श्रेष्ठम् (नाम) संज्ञा (आपः) प्राणाः (चित्) अपि (अस्मै) (अरमन्त) रमन्ते (देवीः) देदीप्यमानाः (पृथक्) (व्रजन्तीः) गच्छन्तीः (परि) (सीम्) परिग्रहे (अवृञ्जन्) वृञ्जन्ति ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यः सर्वेषां सुखं कामयते यस्मिन्त्सर्वे जीवा लोकादयश्च पदार्थाः पृथक् पृथक् क्रीडन्ति गृह्णन्ति त्यजन्ति च तं विहायाऽन्यं कञ्चिदपि मोपाध्वम् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जो सर्वांच्या सुखाची कामना करतो, ज्याच्यात सर्व जीव व लोक इत्यादी पदार्थ पृथक् पृथक् क्रीडा करतात, ग्रहण करतात व त्याग करतात, त्याला सोडून इतर कुणाचीही उपासना करू नका. ॥ ४ ॥