षड्भा॒राँ एको॒ अच॑रन्बिभर्त्यृ॒तं वर्षि॑ष्ठ॒मुप॒ गाव॒ आगुः॑। ति॒स्रो म॒हीरुप॑रास्तस्थु॒रत्या॒ गुहा॒ द्वे निहि॑ते॒ दर्श्येका॑॥
ṣaḍ bhārām̐ eko acaran bibharty ṛtaṁ varṣiṣṭham upa gāva āguḥ | tisro mahīr uparās tasthur atyā guhā dve nihite darśy ekā ||
षट्। भा॒रान्। एकः॑। अच॑रन्। बि॒भ॒र्ति॒। ऋ॒तम्। वर्षि॑ष्ठम्। उप॑। गावः॑। आ। अ॒गुः॒। ति॒स्रः। म॒हीः। उप॑राः। त॒स्थुः॒। अत्याः॑। गुहा॑। द्वे इति॑। निहि॑ते॒ इति॒ निऽहि॑ते। दर्शि॑। एका॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे मनुष्या येन जगदीश्वरेणात्र संसारे द्वे निहिते तयोरेका दर्श्यत्या गुहा उपराश्च तस्थुरुपराश्च तिस्रो महीर्गाव उपागुस्तान् षड् भारानचरन्त्सन्नेक असहाय ईश्वर वर्षिष्ठमृतं च बिभर्त्ति तमेव सततं ध्यायत ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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