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शूर॑स्येव॒ युध्य॑तो अन्त॒मस्य॑ प्रती॒चीनं॑ ददृशे॒ विश्व॑मा॒यत्। अ॒न्तर्म॒तिश्च॑रति नि॒ष्षिधं॒ गोर्म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

English Transliteration

śūrasyeva yudhyato antamasya pratīcīnaṁ dadṛśe viśvam āyat | antar matiś carati niṣṣidhaṁ gor mahad devānām asuratvam ekam ||

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Pad Path

शूर॑स्यऽइव। युध्य॑तः। अ॒न्त॒मस्य॑। प्र॒ती॒चीन॑म्। द॒दृ॒शे॒। विश्व॑म्। आ॒ऽयत्। अ॒न्तः। म॒तिः। च॒र॒ति॒। निः॒ऽसिध॑म्। गोः। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:55» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:29» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

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Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (अन्तमस्य) समीप में वर्त्तमान (युध्यतः) प्रहार करते हुए (शूरस्येव) शत्रुओं के मारनेवाले के सदृश जहाँ (प्रतीचीनम्) पीछे से हुए (आयत्) प्राप्त होते हुए (विश्वम्) संपूर्ण संसार (अन्तः) मध्य में (ददृशे) देख पड़ता है और (गोः) वाणी का (महत्) बड़ा (निष्षिधम्) अत्यन्त शासन करनेवाला (देवानाम्) विद्वानों में (एकम्) सहायरहित (असुरत्वम्) प्राणों में रमनेवाला (मतिः) बुद्धिमान् (चरति) प्राप्त होता है, उसही को ब्रह्म आप लोग जानें ॥८॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे युद्ध करते हुए समीप में वर्त्तमान और शत्रु के नाशक वीरपुरुष के समीप में कायर मनुष्य तिरस्कृत हुए पुरुष के सदृश देखा जाता है, वैसे ही सम्पूर्ण शक्तिवाले अनन्त परमात्मा के समीप में सूर्य्य आदिक जगत् क्षुद्र और तिरस्कृत है और जो जगदीश्वर विद्या के खजाने रूप चारों वेदों वाणी के आभूषण हुओं का शासन करता है, उस ही को इष्ट आप लोग मानो ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

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Anvay:

हे मनुष्या अन्तमस्य युध्यतः शूरस्येव यत्र प्रतीचीनमायद्विश्वमन्तर्ददृशे गोर्महन्निष्षिधं देवानामेकमसुरत्वं मतिश्चरति तदेव ब्रह्म यूयं विजानीत ॥८॥

Word-Meaning: - (शूरस्येव) यथा शत्रून् हिंसतः (युध्यतः) प्रहरतः। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (अन्तमस्य) समीपस्थस्य (प्रतीचीनम्) पश्चाद्भूतम् (ददृशे) दृश्यते (विश्वम्) सर्वञ्जगत् (आयत्) प्राप्नुवत् (अन्तः) मध्ये (मतिः) मेधावी। मतय इति मेधाविना०। निघं० ३। १५। (चरति) गच्छति (निष्षिधम्) यन्नितरां सेधति शास्ति तत् (गोः) वाण्याः (महत्) (देवानाम्) (असुरत्वम्) (एकम्) ॥८॥
Connotation: - हे मनुष्या यथा युध्यमानस्य समीपस्थस्य शूरस्य समीपे कातरो जनस्तिरस्कृतवद् दृश्यते तथैव सर्वशक्तिमतोऽनन्तस्य परमात्मनस्सन्निधौ सूर्य्यादिकं जगत् क्षुद्रं तिरस्कृतं वर्त्तते यो जगदीश्वरो विद्याकोशं वेदचतुष्टयं वाण्याऽऽभूषणं शास्ति तदेवेष्टं यूयं मन्यध्वम् ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जशी शत्रूंचा नाश करणाऱ्या वीर पुरुषाजवळ युद्धात समीप असणारी कायर माणसे तिरस्कृत होतात, तसेच संपूर्ण शक्तियुक्त अनंत परमात्म्याजवळ सूर्य इत्यादी जग क्षुद्र व तिरस्कृत असते. जो जगदीश्वर विद्येचा कोश असलेल्या चार वेदवाणीचे आभूषण बाळगणाऱ्यांना नियंत्रित करतो, त्यालाच तुम्ही इष्टदेव माना. ॥ ८ ॥