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आ॒क्षित्पूर्वा॒स्वप॑रा अनू॒रुत्स॒द्यो जा॒तासु॒ तरु॑णीष्व॒न्तः। अ॒न्तर्व॑तीः सुवते॒ अप्र॑वीता म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

English Transliteration

ākṣit pūrvāsv aparā anūrut sadyo jātāsu taruṇīṣv antaḥ | antarvatīḥ suvate apravītā mahad devānām asuratvam ekam ||

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Pad Path

आ॒ऽक्षित्। पूर्वा॑सु। अप॑राः। अ॒नू॒रुत्। स॒द्यः। जा॒तासु॑। तरु॑णीषु। अ॒न्तरिति॑। अ॒न्तःऽव॑तीः। सु॒व॒ते॒। अप्र॑वीताः। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:55» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:28» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

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Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (पूर्वासु) प्राचीनकाल में विद्यमान और (सद्यः) समान दिन में (जातासु) उत्पन्न और (तरुणीषु) युवावस्थावालियों के सदृश वर्त्तमान प्रजाओं के (अन्तः) मध्य में (आक्षित्) जो चारों ओर सर्वत्र वसता है वह (अनूरुत्) उपदेश देनेवाला वर्त्तमान है ओर जिसके उत्पन्न करने से (अपराः) उत्पन्न की जातीं (अन्तर्वतीः) मध्य में कारण विद्यमान है जिनमें उन (अप्रवीताः) नहीं व्याप्त अर्थात् गणना से नाप सकने योग्य प्रजा (सुवते) उत्पन्न होती हैं वही (देवानाम्) उत्तम गुणवाले सूर्य्य आदिकों के मध्य में (महत्) सबसे बड़े (असुरत्वम्) सबके फेंकनेवाले और (एकम्) चेतनमात्र स्वरूप परमात्मा की आप लोग सेवा करो ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो उत्पन्न, उत्पन्न हो गई और उत्पन्न होनेवाली प्रजाओं में व्याप्त धारण करनेवाला अन्तर्यामी वर्त्तमान है, उस परमात्मा की सेवा करो ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

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Anvay:

हे मनुष्या यः पूर्वासु सद्योजातासु च तरुणीषु प्रजास्वन्तरिक्षदनूरुद्वर्त्तते यस्योत्पादनेनाऽपरा अन्तर्वतीरप्रवीताः प्रजाः सुवते तदेव देवानाम्महदसुरत्वमेकं परमात्मानं यूयं भजत ॥५॥

Word-Meaning: - (आक्षित्) यः समन्तात् क्षियति सर्वत्र वसति सः (पूर्वासु) प्राचीनासु सनातनीषु प्रजासु (अपराः) या जनिष्यन्ते (अनुरुत्) योऽनुरौत्युपदिशति (सद्यः) समानेऽहनि (जातासु) उत्पन्नासु प्रजासु (तरुणीषु) युवतय इव वर्त्तमानासु (अन्तः) (मध्ये) (अन्तर्वती) अन्तर्मध्ये कारणं विद्यते यासु ताः (सुवते) उत्पद्यन्ते (अप्रवीताः) अव्याप्ताः परिच्छिन्नाः (महत्) सर्वेभ्यो बृहत् (देवानाम्) दिव्यगुणानां सूर्यादीनां सकाशात् (असुरत्वम्) सर्वेषां प्रक्षेप्तारम् (एकम्) चेतनमात्रस्वरूपम् ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या य उत्पन्नासूत्पद्यमानासूत्पत्स्यमानासु प्रजासु व्याप्तो धर्त्ताऽन्तर्यामी वर्त्तते तं परमात्मानं सेवन्ताम् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जी प्रजा उत्पन्न होते, उत्पन्न झालेली आहे व उत्पन्न होणारी आहे त्यात व्याप्त असलेल्या व धारण केलेल्या अंतर्यामी परमेश्वराची सेवा करा. ॥ ५ ॥