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दे॒वस्त्वष्टा॑ सवि॒ता वि॒श्वरू॑पः पु॒पोष॑ प्र॒जाः पु॑रु॒धा ज॑जान। इ॒मा च॒ विश्वा॒ भुव॑नान्यस्य म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

English Transliteration

devas tvaṣṭā savitā viśvarūpaḥ pupoṣa prajāḥ purudhā jajāna | imā ca viśvā bhuvanāny asya mahad devānām asuratvam ekam ||

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Pad Path

दे॒वः। त्वष्टा॑। स॒वि॒ता। वि॒श्वऽरू॑पः। पु॒पोष॑। प्र॒ऽजाः। पु॒रु॒धा। ज॒जा॒न॒। इ॒मा। च॒। विश्वा॑। भुव॑नानि। अ॒स्य॒। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:55» Mantra:19 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:31» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:19


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (त्वष्टा) प्रकाश करनेवाला परमेश्वर (देवः) प्रकाशमान (विश्वरूपः) जिससे सम्पूर्ण रूप हैं ऐसे (सविता) प्रेरणा करनेवाले सूर्यमण्डल के सदृश (प्रजाः) उत्पन्न हुए प्राणी अप्राणी को (पुपोष) पुष्ट करता है और (इमा) इन (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवनानि) लोकों को (च) भी (पुरुधा) बहुत प्रकार से (जजान) उत्पन्न करता है (अस्य) इस परमेश्वर का यही (देवानाम्) विद्वानों के बीच (महत्) बड़ा (एकम्) एक (असुरत्वम्) दोषों का दूर करनेवाला गुण है, ऐसा जानना चाहिये ॥१९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य जगत् का पालन करता है, वैसे ही जगदीश्वर सूर्य्य आदि अनेक प्रकार संसार को बनाय करके रक्षा करता है, यही परमात्मा का बड़ा आश्चर्य्य कर्म है, ऐसा जानना चाहिये ॥१९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यस्त्वष्टा परमेश्वरो देवो विश्वरूपः सवितेव प्रजाः पुपोष इमा विश्वा भुवनानि च पुरुधा जजाना स्येदमेव देवानां महदेकमसुरत्वमस्तीति वेद्यम् ॥१९॥

Word-Meaning: - (देवः) देदीप्यमानः (त्वष्टा) प्रकाशकः (सविता) प्रेरकः (विश्वरूपः) विश्वानि रूपाणि यस्मात् सः (पुपोष) पुष्यति (प्रजाः) प्रजाताः (पुरुधा) बहुधा (जजान) जनयति (इमा) इमानि (च) (विश्वा) सर्वाणि (भुवनानि) लोकजातानि (अस्य) परमेश्वरस्य (महत्) (देवानाम्) (असुरत्वम्) (एकम्) ॥१९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यः सर्वं जगत्पालयति तथैव जगदीश्वरः सूर्य्यादिकं बहुविधं जगन्निर्माय रक्षति। इदमेव परमात्मनो महदाश्चर्य्यं कर्माऽस्तीति बोध्यम् ॥१९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य जगाचे पालन करतो तसेच जगदीश्वर सूर्य इत्यादी अनेक प्रकारचे जग निर्माण करून रक्षण करतो. हेच परमेश्वराचे महान आश्चर्यकारक कर्म आहे हे जाणले पाहिजे. ॥ १९ ॥