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सदा॑ सु॒गः पि॑तु॒माँ अ॑स्तु॒ पन्था॒ मध्वा॑ देवा॒ ओष॑धीः॒ संपि॑पृक्त। भगो॑ मे अग्ने स॒ख्ये न मृ॑ध्या॒ उद्रा॒यो अ॑श्यां॒ सद॑नं पुरु॒क्षोः॥

English Transliteration

sadā sugaḥ pitumām̐ astu panthā madhvā devā oṣadhīḥ sam pipṛkta | bhago me agne sakhye na mṛdhyā ud rāyo aśyāṁ sadanam purukṣoḥ ||

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Pad Path

सदा॑। सु॒ऽगः। पि॒तु॒ऽमान्। अ॒स्तु॒। पन्था॑। मध्वा॑। दे॒वाः॒। ओष॑धीः। सम्। पि॒पृ॒क्त॒। भगः॑। मे॒। अ॒ग्ने॒। स॒ख्ये। न। मृ॒ध्याः॑। उत्। रा॒यः। अ॒श्या॒म्। सद॑नम्। पु॒रु॒ऽक्षोः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:54» Mantra:21 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:27» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:21


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (देवाः) विद्वानो ! आप लोग (मध्वा) मधुर आदि गुणों से युक्त (ओषधीः) सोमलता आदि ओषधियों को (सम्) (पिपृक्त) उत्तम प्रकार प्राप्त हों जिससे हम लोगों का (सुगः) सुखपूर्वक चलते हैं जिसमें और (पितुमान्) बहुत अन्न आदि विद्यमान हैं जिसमें ऐसा (पन्थाः) मार्ग सदा सबकाल में (अस्तु) हो और हे (अग्ने) विद्वन् ! (मे) मेरे (सख्ये) मित्र के भाव अर्थात् मित्रपन वा कर्म में आप (न) नहीं (मृध्याः) नाश करो मेरा (भगः) ऐश्वर्य्य आपका हो और जैसे मैं (पुरुक्षो) बहुत अन्नवाले के (सदनम्) गृह और (रायः) धनों को (उत्, अश्याम्) प्राप्त होऊँ, वैसे आप भी इन गृह धनादि वस्तुओं को प्राप्त होइये ॥२१॥
Connotation: - जो विद्वान् लोग वैद्य होकर सर्वदा ओषधियों से रोगों का निवारण करके सबको रोगरहित करें और सदैव मित्रता करके राजा को चाहिये कि दुष्ट डाकू रूप कण्टकों से तथा भय से रहित सरल मार्ग बनावें कि जिन मार्गों में जाकर तथा आकर प्रजायें बहुत धनवाली होवें ॥२१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे देवा विद्वांसो यूयं मध्वोषधीः सम्पिपृक्त येनाऽस्माकं सुगः पितुमान् पन्थाः सदास्तु। हे अग्ने मे सख्ये त्वं न मृध्या मे भगो तेऽस्तु यथाऽहं पुरुक्षोः सदनं रायश्चोदश्यां तथा भवानप्येतत्प्राप्नोतु ॥२१॥

Word-Meaning: - (सदा) सर्वदा (सुगः) सुखेन गच्छन्ति यस्मिन् (पितुमान्) बहूनि पितवोऽन्नादीनि विद्यन्ते यस्मिन् (अस्तु) (पन्थाः) मार्गः (मध्वा) मधुरादिगुणयुक्ताः (देवाः) विद्वांसः (ओषधीः) सोमलताद्याः (सम्) (पिपृक्त) सम्यक्प्राप्नुतः (भगः) ऐश्वर्य्यम् (मे) मम (अग्ने) विद्वन् (सख्ये) सख्युर्भावे कर्मणि वा (न) (मृध्याः) हिंस्याः (उत्) (रायः) धनानि (अश्याम्) प्राप्नुयाम् (सदनम्) गृहम् (पुरुक्षोः) बह्वन्नस्य ॥२१॥
Connotation: - ये विद्वांसो वैद्या भूत्वा सदोषधीभी रोगान्निवार्य्य सर्वानरोगान् कुर्य्युस्सदैव मैत्रीं भावयित्वा राज्ञा निष्कण्टका निर्भयाः सरलाः पन्थानो निर्मातव्याः येषु गत्वाऽऽगत्य प्रजाः पुष्कलधना भवेयुः ॥२१॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वान लोकांनी वैद्य बनून सदैव औषधींनी रोगांचे निवारण करून सर्वांना रोगरहित करावे व सदैव मैत्री करून राजाने दुष्ट डाकूरूपी कंटकापासून भयरहित मार्ग तयार करावा. त्या मार्गाने जाऊन प्रजेने धन कमवावे. ॥ २१ ॥