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म॒हाँ ऋषि॑र्देव॒जा दे॒वजू॒तोऽस्त॑भ्ना॒त्सिन्धु॑मर्ण॒वं नृ॒चक्षाः॑। वि॒श्वामि॑त्रो॒ यदव॑हत्सु॒दास॒मप्रि॑यायत कुशि॒केभि॒रिन्द्रः॑॥

English Transliteration

mahām̐ ṛṣir devajā devajūto stabhnāt sindhum arṇavaṁ nṛcakṣāḥ | viśvāmitro yad avahat sudāsam apriyāyata kuśikebhir indraḥ ||

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Pad Path

म॒हान्। ऋषिः॑। दे॒व॒ऽजाः। दे॒वऽजू॑तः। अस्त॑भ्नात्। सिन्धु॑म्। अ॒र्ण॒वम्। नृ॒ऽचक्षाः॑। वि॒श्वामि॑त्रः। यत्। अव॑हत्। सु॒ऽदास॑म्। अप्रि॑यायत। कु॒शि॒केभिः॑। इन्द्रः॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:53» Mantra:9 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (महान्) बड़प्पन रूप परिमाण से सब पदार्थों से बड़ा (ऋषिः) मन्त्रों के अर्थों का जाननेवाला (देवजाः) विद्वानों में उत्पन्न (देवजूतः) विद्वानों से प्रेरित (नृचक्षाः) मनुष्यों का देखनेवाला (विश्वामित्रः) सबका मित्र (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्य्य का करनेवाला (कुशिकेभिः) कार्य्यों के सिद्धान्तों को जाननेवालों से जैसे सूर्य, पृथिवी (सिन्धुम्) नदी और (अर्णवम्) समुद्र को (अस्तभ्नात्) धारण करती है वैसे राज्य को धारण करे तो लक्ष्मी को (अवहत्) प्राप्त होता है (सुदासम्) उत्तम दान को (अप्रियायत) प्रिय के सदृश करता है, उसका सब लोग सत्कार करें ॥९॥
Connotation: - जैसे सूर्य सब लोकों से बड़ा और सबका धारणकर्त्ता तथा प्रकाश करनेवाला है, वैसे ही सबके जाननेवाले यथार्थवक्ता पुरुष हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यद्यो महानृषिर्देवजा देवजूतो नृचक्षा विश्वामित्र इन्द्रः कुशिकेभिः यथा सूर्यो भूमिं सिन्धुमर्णवं चास्तभ्नात् तथा दिव राज्यं धरेच्छ्रियमवहत् सुदासमप्रियायत तं सर्वे सत्कुरुत ॥९॥

Word-Meaning: - (महान्) महत्त्वपरिमाणतः सर्वेभ्योऽधिकः (ऋषिः) मन्त्रार्थवेत्ता (देवजाः) यो देवेषु विद्वत्सु जातः (देवजूतः) देवैः प्रेरितः (अस्तभ्नात्) स्तभ्नाति धरति (सिन्धुम्) नदीम् (अर्णवम्) समुद्रम् (नृचक्षाः) नृणां द्रष्टा (विश्वामित्रः) सर्वेषां सुहृत् (यत्) यः (अवहत्) प्राप्नोति (सुदासम्) शोभनदानम् (अप्रियायत) प्रिय इवाचरति (कुशिकेभिः) कार्यसिद्धान्तविद्भिः (इन्द्रः) परमैश्वर्यकरः ॥९॥
Connotation: - यथा सूर्यः सर्वेभ्यो लोकेभ्यो महान्त्सर्वस्य धर्त्ता प्रकाशकोऽस्ति तथैव वेदविद आप्ता वर्त्तन्त इति वेद्यम् ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा सूर्य सर्व गोलांपेक्षा मोठा व सर्वांचा धारणकर्ता आणि प्रकाशक आहे तसेच यथार्थवक्ते पुरुष सर्वांना जाणणारे असतात हे जाणले पाहिजे. ॥ ९ ॥