इ॒मे इ॑न्द्र भर॒तस्य॑ पु॒त्रा अ॑पपि॒त्वं चि॑कितु॒र्न प्र॑पि॒त्वम्। हि॒न्वन्त्यश्व॒मर॑णं॒ न नित्यं॒ ज्या॑वाजं॒ परि॑ णयन्त्या॒जौ॥
ima indra bharatasya putrā apapitvaṁ cikitur na prapitvam | hinvanty aśvam araṇaṁ na nityaṁ jyāvājam pari ṇayanty ājau ||
इ॒मे। इ॒न्द्र॒। भ॒र॒तस्य॑। पु॒त्राः। अ॒प॒ऽपि॒त्वम्। चि॒कि॒तुः॒। न। प्र॒ऽपि॒त्वम्। हि॒न्वन्ति॑। अश्व॑म्। अर॑णम्। न। नित्य॑म्। ज्या॒ऽवाज॑म्। परि॑। न॒य॒न्ति॒। आ॒जौ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे इन्द्र ! तव सेनाया भरतस्य चिकितुर्न य इमे पुत्रा इवाऽपपित्वं प्रपित्वमश्वमरणं न हिन्वन्त्याजौ ज्यावाजं नित्यं परिणयन्ति ताँश्च त्वं स्वात्मवद्रक्ष ॥२४॥
MATA SAVITA JOSHI
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