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हं॒साइ॑व कृणुथ॒ श्लोक॒मद्रि॑भि॒र्मद॑न्तो गी॒र्भिर॑ध्व॒रे सु॒ते सचा॑। दे॒वेभि॑र्विप्रा ऋषयो नृचक्षसो॒ वि पि॑बध्वं कुशिकाः सो॒म्यं मधु॑॥

English Transliteration

haṁsā iva kṛṇutha ślokam adribhir madanto gīrbhir adhvare sute sacā | devebhir viprā ṛṣayo nṛcakṣaso vi pibadhvaṁ kuśikāḥ somyam madhu ||

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Pad Path

हं॒साःऽइ॑व। कृ॒णु॒थ॒। श्लोक॑म्। अद्रि॑ऽभिः। मद॑न्तः। गीः॒ऽभिः। अ॒ध्व॒रे। सु॒ते। सचा॑। दे॒वेभिः॑। वि॒प्राः॒। ऋ॒ष॒यः॒। नृ॒ऽच॒क्ष॒सः॒। वि। पि॒ब॒ध्व॒म्। कु॒शि॒काः॒। सो॒म्यम्। मधु॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:53» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (कुशिकाः) विद्याओं के सिद्धान्तों के जानने (नृचक्षसः) मनुष्यों की विद्यादृष्टि से परीक्षा करने और (ऋषयः) मन्त्रों के अर्थों को जाननेवाले (विप्राः) बुद्धिमान् ! आप लोग (सुते) उत्पन्न (अध्वरे) नहीं हिंसा करने योग्य पढ़ने और पढ़ाने रूप व्यवहार में (अद्रिभिः) मेघों से (मदन्तः) आनन्द को प्राप्त होते हुए (देवेभिः) विद्वानों के साथ (श्लोकम्) उत्तम स्वरूप वाणी को (कृणुथ) करो और सत्य के (सचा) समूह में वर्त्तमान (सोम्यम्) ऐश्वर्य्य में श्रेष्ठ (मधु) मधुर आदि गुण युक्त द्रव्य का (वि, पिबध्वम्) पान कीजिये ॥१०॥
Connotation: - अत्यन्त विद्वान् जन विद्वानों के प्रति जितेन्द्रियता धर्मात्मता सुशीलता और सभ्यता को ग्रहण करावें कि जिससे वे भी श्रेष्ठ होकर संसार के कल्याण को करें ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे कुशिका नृचक्षस ऋषयो विप्रा ! यूयं सुतेऽध्वरेऽद्रिभिर्मदन्तः सन्तो देवेभिः सह श्लोकं हंसाइव कृणुथ सत्यस्य सचा वर्त्तध्वं सोम्यं मधु विपिबध्वम् ॥१०॥

Word-Meaning: - (हंसाइव) (कृणुथ) (श्लोकम्) सुलक्षणां वाचम्। श्लोक इति वाङ्नाम निघं० । १। ११। (अद्रिभिः) मेघैः (मदन्तः) प्राप्तानन्दाः (गीर्भिः) सुशिक्षिताभिर्वाग्भिः (अध्वरेः) अहिंसनीयेऽध्ययनाऽध्यापनीये व्यवहारे (सुते) निष्पन्ने (सचा) समूहे (देवेभिः) विद्वद्भिः (विप्राः) मेधाविनः (ऋषयः) मन्त्रार्थवेत्तारः (नृचक्षसः) मनुष्याणां विद्यादृष्ट्या परीक्षकाः (वि) (पिबध्वम्) (कुशिकाः) विद्यासिद्धान्तनिष्कर्षकाः (सोम्यम्) सोम ऐश्वर्ये साधु (मधु) मधुरादिगुणं द्रव्यम् ॥१०॥
Connotation: - परमविद्वांसो विदुषः प्रति जितेन्द्रियतां धर्मात्मतां सुशीलतां सभ्यतां च ग्राहयेयुर्यतस्तेऽप्याप्ता भूत्वा जगत्कल्याणं कुर्युः ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - अत्यंत विद्वानांनी इतर विद्वानांना जितेन्द्रियता, धार्मिकता, सुशीलता, सभ्यता शिकवावी. ज्यामुळे त्यांनीही श्रेष्ठ बनून जगाचे कल्याण करावे. ॥ १० ॥