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पू॒ष॒ण्वते॑ ते चकृमा कर॒म्भं हरि॑वते॒ हर्य॑श्वाय धा॒नाः। अ॒पू॒पम॑द्धि॒ सग॑णो म॒रुद्भिः॒ सोमं॑ पिब वृत्र॒हा शू॑र वि॒द्वान्॥

English Transliteration

pūṣaṇvate te cakṛmā karambhaṁ harivate haryaśvāya dhānāḥ | apūpam addhi sagaṇo marudbhiḥ somam piba vṛtrahā śūra vidvān ||

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Pad Path

पू॒ष॒ण्ऽवते॑। ते॒। च॒कृ॒म॒। क॒र॒म्भम्। हरि॑ऽवते। हरि॑ऽअश्वाय। धा॒नाः। अ॒पू॒पम्। अ॒द्धि॒। सऽग॑णः। म॒रुत्ऽभिः॑। सोम॑म्। पि॒ब॒। वृ॒त्र॒ऽहा। शू॒र॒। वि॒द्वान्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:52» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:18» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (शूर) दुष्ट पुरुष के नाशकर्त्ता ! जैसे (वृत्रहा) धन से युक्त विद्वान् पुरुष (पूषण्वते) पुष्टि करनेवाले विद्यमान हैं जिसके उस (हरिवते) उत्तम घोड़े आदि से युक्त के तथा (हर्य्यश्वाय) हरणशील और शीघ्र चालवाले घोड़े वा अग्नि आदि विद्यमान हैं जिसके उस (ते) आपके लिये (करम्भम्) दधि आदि से युक्त भोजन करने के पदार्थ विशेष और (धानाः) भूँजे हुए अन्न तथा (अपूपम्) पुआ को देवे उसको (सगणः) समूह के सहित वर्त्तमान आप (मरुद्भिः) उत्तम मनुष्यों के साथ (अद्धि) भक्षण कीजिये और (सोमम्) उत्तम ओषधि के रस को (पिब) पान कीजिये और वैसे ही हम लोग आपके लिये (चकृम) करें ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्या नम्रता से युक्त हैं, वे श्रेष्ठ राजा के लिये उत्तम पदार्थों को देकर इसका निरन्तर सत्कार करें और वे राजा से भी सर्वदा सत्कार के योग्य हैं ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे शूर ! यथा वृत्रहा विद्वान् पूषण्वते हरिवते हर्य्यश्वाय ते करम्भं धाना अपूपं दद्यात्तं सगणस्त्वं मरुद्भिः सहाऽद्धि सोमं पिब। तथैव वयं त्वदर्थं चकृम ॥७॥

Word-Meaning: - (पूषण्वते) बहवः पूषणः पुष्टिकरा विद्यन्ते यस्य तस्मै (ते) तुभ्यम् (चकृम) कुर्य्याम। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (करम्भम्) दध्यादियुक्तं भक्ष्यविशेषम् (हरिवते) प्रशस्ताऽश्वादियुक्ताय (हर्य्यश्वाय) हरणशीला आशुगामिनोऽश्वास्तुरङ्गा अग्न्यादयो वा विद्यन्ते यस्य तस्मै (धानाः) (अपूपम्) (अद्धि) भक्ष (सगणः) गणेन सह वर्त्तमानः (मरुद्भिः) उत्तमैर्मनुष्यैः सह (सोमम्) उत्तमौषधिरसम् (पिब) (वृत्रहा) प्राप्तधनः (शूर) दुष्टानां हिंसक (विद्वान्) ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विद्याविनयसंपन्नास्तेऽर्हाय राज्ञ उत्तमान् पदार्थान् दत्वैनं सततं सत्कुर्य्युस्ते राज्ञाऽपि सर्वदा सत्कर्त्तव्याः ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्या व नम्रता यांनी युक्त आहेत. त्यांनी श्रेष्ठ राजाचा उत्तम पदार्थांनी निरंतर सत्कार करावा व त्यांचाही राजाकडून सदैव सत्कार झाला पाहिजे. ॥ ७ ॥