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तृ॒तीये॑ धा॒नाः सव॑ने पुरुष्टुत पुरो॒ळाश॒माहु॑तं मामहस्व नः। ऋ॒भु॒मन्तं॒ वाज॑वन्तं त्वा कवे॒ प्रय॑स्वन्त॒ उप॑ शिक्षेम धी॒तिभिः॑॥

English Transliteration

tṛtīye dhānāḥ savane puruṣṭuta puroḻāśam āhutam māmahasva naḥ | ṛbhumantaṁ vājavantaṁ tvā kave prayasvanta upa śikṣema dhītibhiḥ ||

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Pad Path

तृ॒तीये॑। धा॒नाः। सव॑ने। पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒। पु॒रो॒ळाश॑म्। आऽहु॑तम्। म॒म॒ह॒स्व॒। नः॒। ऋ॒भु॒ऽमन्त॑म्। वाज॑ऽवन्तम्। त्वा॒। क॒वे॒। प्रय॑स्वन्तः। उप॑। शि॒क्षे॒म॒। धी॒तिऽभिः॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:52» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अध्यापक के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (पुरुष्टुत) बहुतों से प्रशंसित (कवे) विद्वान् पुरुष ! (प्रयस्वन्तः) प्रयत्न करते हुए हम लोग (धीतिभिः) अङ्गुलियों से दिखाये गये वचनार्थों से (तृतीये) तीन की पूर्त्ति करनेवाले (सवने) सायंकाल में करने योग्य कर्म में (पुरोळाशम्) उत्तम संस्कारयुक्त अन्न विशेष और (धानाः) अग्नि से भूँजे गये अन्न विशेषों के तुल्य (ऋभुमन्तम्) श्रेष्ठ बुद्धिमानों से युक्त (वाजवन्तम्) शुष्क अन्न विशेष विद्यमान जिसके उस (आहुतम्) पुकारे गये (त्वा) आपको (उप, शिक्षेम) शिक्षा देवैं वह आप (नः) हम लोगों का (मामहस्व) अत्यन्त सत्कार करिये ॥६॥
Connotation: - जैसे विद्वान् यज्ञ करनेवाले यजमानों के लिये यज्ञ कृत्य की शिक्षा देते हैं, वैसे ही संपूर्ण विद्याओं का हस्त आदि क्रियाओं से प्रत्यक्ष अर्थात् अभ्यास करके अन्य जनों के लिये अध्यापक लोग प्रत्यक्ष करावें ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाऽध्यापकविषयमाह।

Anvay:

हे पुरुष्टुत कवे ! प्रयस्वन्तो वयं धीतिभिस्तृतीये सवने पुरोळाशं धाना ऋभुमन्तं वाजवन्तमाहुतं त्वोपशिक्षेम स त्वं नो मामहस्व ॥६॥

Word-Meaning: - (तृतीये) त्रयाणां पूरके (धानाः) अग्निना भृष्टाऽन्नविशेषाः (सवने) सायंकाले कर्त्तव्ये कर्मणि (पुरुष्टुत) बहुभिः प्रशंसित (पुरोळाशम्) सुसंस्कृतान्नविशेषम् (आहुतम्) कृताऽऽह्वानम् (मामहस्व) भृशं सत्कुरु (नः) अस्मान् (ऋभुमन्तम्) प्रशस्ता ऋभवो मेधाविनो विद्यन्ते यस्य तम् (वाजवन्तम्) वाजाः शुष्कान्नविशेषा विद्यन्ते यस्य तम् (त्वा) त्वाम् (कवे) विद्वन् (प्रयस्वन्तः) प्रयतमानाः (उप) (शिक्षेम) (धीतिभिः) अङ्गुलीभिर्निर्दिष्टैर्वचनार्थैः ॥६॥
Connotation: - यथा विद्वांस ऋत्विजो यजमानादिभ्यो यज्ञकृत्यं शिक्षन्ति तथैव सर्वा विद्या हस्तादिक्रियया प्रत्यक्षीकृत्याऽन्यान् प्रत्यध्यापकाः साक्षात्कारयन्तु ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे विद्वान ऋत्विज यज्ञ करणाऱ्या यजमानासाठी यज्ञकर्माचे शिक्षण देतात तसे अध्यापकांनी संपूर्ण विद्यांचे प्रात्यक्षिक करून इतरांसाठी प्रत्यक्ष करवावे. ॥ ६ ॥