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पु॒रो॒ळाशं॑ सनश्रुत प्रातःसा॒वे जु॑षस्व नः। इन्द्र॒ क्रतु॒र्हि ते॑ बृ॒हन्॥

English Transliteration

puroḻāśaṁ sanaśruta prātaḥsāve juṣasva naḥ | indra kratur hi te bṛhan ||

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Pad Path

पु॒रो॒ळास॑म्। स॒न॒ऽश्रु॒त॒। प्रा॒तः॒ऽसा॒वे। जु॒ष॒स्व॒। नः॒। इन्द्र॑। क्रतुः॑। हि। ते॒। बृ॒हन्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:52» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:17» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (सनश्रुत) सत्य और असत्य के विचारकर्त्ताओं से उत्तम कृत्य सुना जिसने ऐसे (इन्द्र) विद्या और ऐश्वर्य से युक्त (हि) जिससे (ते) आपकी (क्रतुः) बुद्धि वा कर्म्म (बृहन्) बड़ा है तिससे आप (प्रातःसावे) जो प्रातःकाल में किया जाय उसमें (नः) हम लोगों के (पुरोडाशम्) उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्नविशेष का (जुषस्व) सेवन करो ॥४॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि जिन पुरुषों में जैसी विद्या और शीलता होवे, वैसी ही उन पर उत्तम कृपा करें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे सनश्रुतेन्द्र ! हि यतस्ते क्रतुर्बृहन्नस्ति तस्मात्वं प्रातःसावे नः पुरोडाशं जुषस्व ॥४॥

Word-Meaning: - (पुरोडाशम्) सुसंस्कृतमन्नविशेषम् (सनश्रुत) सत्याऽसत्यविवेकिनां सकाशाच्छ्रुतं येन यद्वा सनं सत्यासत्यविभाजकं वचनं श्रुतं येन तत्सम्बुद्धौ (प्रातःसवने) यः प्रातः सूयते निष्पद्यते तस्मिन् (जुषस्व) सेवस्व (नः) अस्माकम् (इन्द्र) विद्यैश्वर्य्ययुक्त (क्रतुः) प्रज्ञा कर्म वा (हि) यतः (ते) तव (बृहन्) महान् ॥४॥
Connotation: - मनुष्यैर्येषु यादृशी विद्या शीलता भवेत् तादृश्येव तेषु सत्कृपा कार्या ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या पुरुषांमध्ये जशी विद्या व शील असेल तशी माणसांनी त्यांच्यावर कृपा करावी. ॥ ४ ॥