नृ॒णामु॑ त्वा॒ नृत॑मं गी॒र्भिरु॒क्थैर॒भि प्र वी॒रम॑र्चता स॒बाधः॑। सं सह॑से पुरुमा॒यो जि॑हीते॒ नमो॑ अस्य प्र॒दिव॒ एक॑ ईशे॥
nṛṇām u tvā nṛtamaṁ gīrbhir ukthair abhi pra vīram arcatā sabādhaḥ | saṁ sahase purumāyo jihīte namo asya pradiva eka īśe ||
नृ॒णाम्। ऊँ॒ इति॑। त्वा॒। नृऽत॑मम्। गीः॒ऽभिः। उ॒क्थैः। अ॒भि। प्र। वी॒रम्। अ॒र्च॒त॒। स॒ऽबाधः॑। सम्। सह॑से। पु॒रु॒ऽमा॒यः। जि॒ही॒ते॒। नमः॑। अ॒स्य॒। प्र॒ऽदिवः॑। एकः॑। ई॒शे॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब प्रजा के प्रशंसा के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ प्रजाप्रशंसाविषयमाह।
हे विद्वांसो यूयं यः सबाधः पुरुमाय एकः सेनेशोऽस्य प्रदिव ईशे सहसे नमः संजिहीते तं वीरं प्रार्चत। हे राजन् ये गीर्भिरुक्थैर्नृणां नृतमं त्वा सत्कुर्युस्तानु त्वमभ्यर्च ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
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