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आ॒क॒रे वसो॑र्जरि॒ता प॑नस्यतेऽने॒हसः॒ स्तुभ॒ इन्द्रो॑ दुवस्यति। वि॒वस्व॑तः॒ सद॑न॒ आ हि पि॑प्रि॒ये स॑त्रा॒साह॑मभिमाति॒हनं॑ स्तुहि॥

English Transliteration

ākare vasor jaritā panasyate nehasaḥ stubha indro duvasyati | vivasvataḥ sadana ā hi pipriye satrāsāham abhimātihanaṁ stuhi ||

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Pad Path

आ॒ऽक॒रे। वसोः॑। ज॒रि॒ता। प॒न॒स्य॒ते॒। अ॒ने॒हसः॑। स्तुभः॑। इन्द्रः॑। दु॒व॒स्य॒ति॒। वि॒वस्व॑तः। सद॑ने। आ। हि। पि॒प्रि॒ये। स॒त्रा॒ऽसह॑म्। अ॒भि॒मा॒ति॒ऽहन॑म्। स्तु॒हि॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:51» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:15» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (स्तुभः) फलों को प्राप्त होने (जरिता) स्तुति करनेवाला (अनेहसः) नहीं नाश करने योग्य (वसोः) धन के (आकरे) समूह में (विवस्वतः) सूर्य के (सदने) स्थान में (इन्द्रः) बिजुली के सदृश सबका स्वामी राजा (पनस्यते) व्यवहार करता है और विद्वान् के धर्म का (दुवस्यति) सेवन करता और (सत्रासाहम्) सत्य के सहनेवाले (अभिमातिहनम्) अभिमानयुक्त शत्रु के नाश करनेवाले को (आ, प्रीणाति) प्रसन्न करता है, उसकी (हि) निश्चय (स्तुहि) स्तुति करो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे ईश्वर से बिजुली द्वारा उत्पन्न किया गया सूर्य एकत्र वर्त्तमान हुआ सर्वत्र विद्यमान सब वस्तुओं को प्रकाशित करता है, वैसे ही एक स्थान में वर्त्तमान राजा मन्त्री दूत पियादे और सेनादि के प्रबन्ध से संपूर्ण राज्य को विद्या और विनय से प्रकाशित करके ऐश्वर्य के समूह से धर्म की उन्नति के लिये व्यवहार करे ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यः स्तुभो जरिता अनेहसो वसोराकरे विवस्वतः सदन इन्द्र इव पनस्यते विदुषो धर्मं च दुवस्यति सत्रासाहमभिमातिहनमा पिप्रिये तं हि स्तुहि ॥३॥

Word-Meaning: - (आकरे) समूहे (वसोः) धनस्य (जरिता) स्तोता (पनस्यते) व्यवहरति (अनेहसः) अहन्तव्यस्य (स्तुभः) यः स्तोभते सः (इन्द्रः) विद्युदिव सर्वाधीशो राजा (दुवस्यति) परिचरति (विवस्वतः) सूर्यस्य (सदने) स्थाने (आ) समन्तात् (हि) खलु (पिप्रिये) प्रीणाति (सत्रासाहम्) सत्यसहम् (अभिमातिहनम्) योऽभिमानयुक्तं शत्रुं हन्ति तम् (स्तुहि) ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेश्वरेण विद्युत उत्पादितः सूर्य एकत्र वर्त्तमानः सन् सर्वत्र सन्निहितं सर्वं प्रकाशते तथैवैकस्मिन् देशे स्थितो राजा अमात्यदूतचारसेनादिप्रबन्धेन सर्वं राज्यं विद्याविनयाभ्यामुज्ज्वल्यैश्वर्यसमूहेन धर्मोन्नतये व्यवहरेत् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे ईश्वराने विद्युतद्वारे उत्पन्न केलेला सूर्य सर्व वस्तूंना प्रकाशित करतो तसे एकाच स्थानी असलेल्या राजाने मंत्री, दूत, सैनिक व सेनेच्या प्रबंधाने संपूर्ण राज्याला विद्या व विनय यांनी प्रकाशित करून ऐश्वर्याच्या साहाय्याने धर्माची वाढ केली पाहिजे. ॥ ३ ॥