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शु॒नं हु॑वेम म॒घवा॑न॒मिन्द्र॑म॒स्मिन्भरे॒ नृत॑मं॒ वाज॑सातौ। शृ॒ण्वन्त॑मु॒ग्रमू॒तये॑ स॒मत्सु॒ घ्नन्तं॑ वृ॒त्राणि॑ सं॒जितं॒ धना॑नाम्॥

English Transliteration

śunaṁ huvema maghavānam indram asmin bhare nṛtamaṁ vājasātau | śṛṇvantam ugram ūtaye samatsu ghnantaṁ vṛtrāṇi saṁjitaṁ dhanānām ||

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Pad Path

शु॒नम्। हु॒वे॒म॒। म॒घवा॑नम्। इन्द्र॑म्। अ॒स्मिन्। भरे॑। नृऽत॑मम्। वाज॑ऽसातौ। शृ॒ण्वन्त॑म्। उ॒ग्रम्। ऊ॒तये॑। स॒मत्ऽसु॑। घ्नन्त॑म्। वृ॒त्राणि॑। स॒म्ऽजित॑म्। धना॑नाम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:50» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:14» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! हम लोग (अस्मिन्) इस (वाजसातौ) विज्ञान के सेवन करने और (भरे) प्रेम से पालन करने योग्य व्यवहार में (ऊतये) ऐक्यभाव में प्रवेश होने के लिये (मघवानम्) श्रेष्ठ धनवाले और (नृतमम्) अत्यन्त प्रीति के प्राप्त करानेवाले और (वृत्राणि) प्रेम के स्थानभूत वस्तुओं को (शृण्वन्तम्) सुननेवाले (समत्सु) विरोध के व्यवहारों में वर्त्तमान कारणों को (घ्नन्तम्) नाश करते हुए (उग्रम्) द्वेष के विनाशकर्त्ता (धनानाम्) द्रव्यों को (सञ्जितम्) उत्तम प्रकार जीतने और (इन्द्रम्) विरोध के नाश करनेवाले को (शुनम्) परस्पर मेल से उत्पन्न सुख को जैसे वैसे (हुवेम) ग्रहण करें, उसका आप लोग भी सेवन करें ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वे ही धन्य मनुष्य कि जो विरोध का त्याग करके एक साथ ऐश्वर्य उत्पन्न करते हैं ॥५॥ इस सूक्त में परस्पर की प्रीति वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह पचासवाँ सूक्त और चौदहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या वयमस्मिन् वाजसातौ भरे ऊतये मघवानं नृतमं वृत्राणि शृण्वन्तं समत्सु वर्त्तमानानि निमित्तानि घ्नन्तमुग्रं धनानां सञ्जितमिन्द्रं शुनमिव हुवेम तं यूयमपि सेवध्वम् ॥५॥

Word-Meaning: - (शुनम्) परस्परमेलजन्यं सुखम् (हुवेम) (मघवानम्) पूजितधनवन्तम् (इन्द्रम्) विरोधविदारकम् (अस्मिन्) (भरे) प्रेम्णा पालनीये व्यवहारे (नृतमम्) अतिशयेन प्रीतेर्नेतारं प्रापकम् (वाजसातौ) विज्ञानसेवने (शृण्वन्तम्) (उग्रम्) द्वेषविनाशकम् (ऊतये) ऐक्यभावप्रवेशाय (समत्सु) विरोधव्यवहारेषु (घ्नन्तम्) विनाशयन्तम् (वृत्राणि) प्रेमास्पदवस्तूनि (सञ्जितम्) सम्यग् जयशीलम् (धनानाम्) द्रव्याणाम् ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। त एव धन्या मनुष्या ये विरोधं परिहाय सहाऽनुभूतिं जनयन्तीति ॥५॥ अत्र परस्परेषां प्रीतिवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चाशत्तमं सूक्तं चतुर्दशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. तीच माणसे धन्य आहेत जी विरोध सोडून सहानुभूती व ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ५ ॥