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प्रेद्व॒ग्निर्वा॑वृधे॒ स्तोमे॑भिर्गी॒र्भिः स्तो॑तॄ॒णां न॑म॒स्य॑ उ॒क्थैः। पू॒र्वीर्ऋ॒तस्य॑ सं॒दृश॑श्चका॒नः सं दू॒तो अ॑द्यौदु॒षसो॑ विरो॒के॥

English Transliteration

pred v agnir vāvṛdhe stomebhir gīrbhiḥ stotṝṇāṁ namasya ukthaiḥ | pūrvīr ṛtasya saṁdṛśaś cakānaḥ saṁ dūto adyaud uṣaso viroke ||

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Pad Path

प्र। इत्। ऊँ॒ इति॑। अ॒ग्निः। व॒वृ॒धे॒। स्तोमे॑भिः। गीः॒ऽभिः। स्तो॒तॄ॒णाम्। न॒म॒स्यः॑। उ॒क्थैः। पू॒र्वीः। ऋ॒तस्य॑। स॒म्ऽदृशः॑। च॒का॒नः। सम्। दू॒तः। अ॒द्यौ॒त्। उ॒षसः॑। वि॒ऽरो॒के॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:5» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:24» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जैसे (दूतः) परिताप देनेवाला (अग्निः) अग्नि इन्धनों से (प्र, ववृधे) अच्छे प्रकार बढ़ता है वैसे (स्तोतॄणाम्) समस्त विद्या प्रशंसा करनेवालों के (स्तोमेभिः) उन व्यवहारों से जिनसे सब विद्याओं की स्तुति करते हैं (गीर्भिः) तथा सुशिक्षित वाणियों से (उक्थैः) और सब विद्याओं का सम्बन्ध जिनमें करते हैं उन व्यवहारों से (नमस्यः) जो सत्कार करने योग्य है वह बढ़ता है जैसे अग्नि (विरोके) सब ओर से जिनमें प्रीति है उस व्यवहार के वा प्रकाश के निमित्त (उषसः) प्रभात समयों को (अद्यौत्) प्रकाशित करता है वैसे (संदृशः) अच्छे प्रकार देखने को (ऋतस्य) सत्यसम्बन्धी (पूर्वीः) पूर्ण बहुत विद्या की (चकानः) कामना करता हुआ (इत्, उ) ही तर्क-वितर्क के साथ विद्वान् (सम्) अच्छे प्रकार प्रकाशित होता है ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे इन्धन और घृतादिकों से अग्नि प्रवृद्ध हो कर प्रकाशित होता, वैसे ब्रह्मचर्य और विद्याभ्यासादिकों से मनुष्यों के आत्मा ज्ञानवृद्ध हो कर सनातन विद्या सबको देकर पूज्यतम होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यथा दूतोऽग्निरिन्धनैः प्रववृधे तथा स्तोतॄणां स्तोमेभिर्गीर्भिरुक्थैर्नमस्यो वर्धते यथाग्निर्विरोके उषसोऽद्यौत्तथा संदृश ऋतस्य पूर्वीश्चकानो इदु विद्वान् संद्योतयति ॥२॥

Word-Meaning: - (प्र) प्रकृष्टे (इत्) एव (उ) वितर्के (अग्निः) पावकः (ववृधे) वर्धते (स्तोमेभिः) स्तुवन्ति सकला विद्या यैस्तैः (गीर्भिः) सुशिक्षिताभिर्वाग्भिः (स्तोतॄणाम्) अखिलविद्याप्रशंसकानाम् (नमस्यः) पूज्यः (उक्थैः) उचन्ति सर्वा विद्या येषु तैः (पूर्वीः) पूर्णा बह्व्यो विद्याः (ऋतस्य) सत्यस्य (संदृशः) सम्यग्द्रष्टुं योग्यस्य (चकानः) कामयमानः (सम्) सम्यक् (दूतः) यो दुनोति परितापयति सः (अद्यौत्) द्योतयति (उषसः) प्रभातान् (विरोके) अभिप्रीते प्रदीपने वा ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेन्धनघृतादिना वह्निः प्रवृध्य प्रकाशयति तथा ब्रह्मचर्य्यविद्याभ्यासादिभिर्मनुष्याणा-मात्मानो ज्ञानविद्धा भूत्वा सनातनीविद्याः सर्वेभ्यो दत्वा पूज्यतमा जायन्ते ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे इंधन व घृत इत्यादींनी अग्नी प्रवृद्ध होऊन प्रकाशित होतो तसे ब्रह्मचर्य व विद्याभ्यासाने माणसांचे आत्मज्ञान वर्धित होऊन ते सर्वांना सनातन विद्या देऊन पूजनीय ठरतात. ॥ २ ॥