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उद॑स्तम्भीत्स॒मिधा॒ नाक॑मृ॒ष्वो॒३॒॑ग्निर्भव॑न्नुत्त॒मो रो॑च॒नाना॑म्। यदी॒ भृगु॑भ्यः॒ परि॑ मात॒रिश्वा॒ गुहा॒ सन्तं॑ हव्य॒वाहं॑ समी॒धे॥

English Transliteration

ud astambhīt samidhā nākam ṛṣvo gnir bhavann uttamo rocanānām | yadī bhṛgubhyaḥ pari mātariśvā guhā santaṁ havyavāhaṁ samīdhe ||

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Pad Path

उत्। अ॒स्त॒म्भी॒त्। स॒म्ऽइधा॑। नाक॑म्। ऋ॒ष्वः। अ॒ग्निः। भव॑न्। उ॒त्ऽत॒मः। रो॒च॒नाना॑म्। यदि॑। भृगु॑ऽभ्यः॑। परि॑। मा॒त॒रिश्वा॑। गुहा॑। सन्त॑म्। ह॒व्य॒ऽवाह॑म्। स॒म्ऽई॒धे॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:5» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - यदि (रोचनानाम्) प्रकाशमानों में (उत्तमः) उत्तम (भवन्) होता हुआ (ऋष्वः) महान् (अग्निः) अग्नि (भृगुभ्यः) भूंजते हुए पदार्थों से (समिधा) अच्छे प्रकार प्रकाश के साथ (नाकम्) सुख का (उदस्तम्भीत्) उत्थान करता है तो मैं (गुहा) पदार्थों के भीतर (सन्तम्) वर्त्तमान (हव्यवाहम्) और जो होम के पदार्थों को अन्तरिक्ष को पहुँचाता उस अग्नि को (परिसमीधे) सब ओर से प्रदीप्त करूँ ॥१०॥
Connotation: - जैसे अग्नि बिजुली सूर्य्यरूप से सबको धारण करता है, वैसे उसको मैं धारण करता हूँ ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यदि रोचनानामुत्तमो भवन्नृष्वो मातरिश्वाऽग्निर्भृगुभ्यः समिधा नाकमुदस्तम्भीत्तर्हि तमहं गुहा सन्तं हव्यवाहं परिसमीधे ॥१०॥

Word-Meaning: - (उत्) (अस्तम्भीत्) उत्तभ्नाति (समिधा) प्रदीपनेन (नाकम्) अविद्यमानदुःखम् (ऋष्वः) महान् (अग्निः) (भवन्) (उत्तमः) श्रेष्ठः (रोचनानाम्) प्रकाशमानानाम् (यदि)। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (भृगुभ्यः) भर्जमानेभ्यः (परि) सर्वतः (मातरिश्वा) अन्तरिक्षशयानः (गुहा) गुहायाम् (सन्तम्) वर्त्तमानम् (हव्यवाहम्) यो हव्यं हविर्वहति तम् (समीधे) प्रदीपयेय ॥१०॥
Connotation: - यथा वह्निर्विद्युत्सूर्य्यरूपेण सर्वं दधाति तथैव तमहं धरामि ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा अग्नी विद्युत सूर्यरूपाने सर्वांना धारण करतो तसा त्याला मी धारण करतो. ॥ १० ॥