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आ न॒स्तुजं॑ र॒यिं भ॒रांशं॒ न प्र॑तिजान॒ते। वृ॒क्षं प॒क्वं फल॑म॒ङ्कीव॑ धूनु॒हीन्द्र॑ सं॒पार॑णं॒ वसु॑॥

English Transliteration

ā nas tujaṁ rayim bharāṁśaṁ na pratijānate | vṛkṣam pakvam phalam aṅkīva dhūnuhīndra sampāraṇaṁ vasu ||

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Pad Path

आ। नः॒। तुज॑म्। र॒यिम्। भ॒र॒। अंश॑म्। न। प्र॒ति॒ऽजा॒न॒ते। वृ॒क्षम्। प॒क्वम्। फल॑म्। अ॒ङ्कीऽइ॑व। धू॒नु॒हि॒। इन्द्र॑। स॒म्ऽपार॑णम्। वसु॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:45» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:9» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) धन के दाता ! आप (अंशम्) भाग के (न) तुल्य (नः) हमलोगों के लिये (प्रतिजानते) प्रतिज्ञा से व्यवहार के सिद्ध करनेवाले के लिये और (तुजम्) ग्रहण करने के योग्य (रयिम्) धन को (आ) सब ओर से (भर) दीजिये (वृक्षम्) वृक्ष को और (पक्वम्) पाकयुक्त (फलम्) फल को (अङ्कीव) अंकुश धारण किये हुए के सदृश (सम्पारणम्) उत्तम प्रकार दुःख के पार जाता है जिससे ऐसे (वसु) धन को (धूनुहि) कम्पाइये अर्थात् भेजिये ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। वे ही धार्मिक पुरुष हैं, जो अन्य लोगों के सुख के लिये लक्ष्मी धारण करके औरों के दुःख नाश करनेवाले होवें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वमंशं न नोऽस्मभ्यं प्रतिजानते च तुजं रयिमाभर। वृक्षं पक्वं फलमङ्कीव सम्पारणं वसु धूनुहि ॥४॥

Word-Meaning: - (आ) (नः) अस्मभ्यम् (तुजम्) आदातव्यम् (रयिम्) धनम् (भर) धेहि (अंशम्) भागम् (न) इव (प्रतिजानते) प्रतिज्ञया व्यवहारस्य साधकाय (वृक्षम्) (पक्वम्) (फलम्) (अङ्कीव) यथाङ्कुशी तथा (धूनुहि) कम्पय (इन्द्र) धनप्रद (सम्पारणम्) सम्यग् दुःखस्य पारं गच्छति येन तत् (वसु) धनम् ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। त एव धार्मिका ये परमसुखाय श्रियं धृत्वा परदुःखभञ्जनाः स्युः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे अन्य लोकांच्या सुखासाठी लक्ष्मीला धारण करतात व इतरांच्या दुःखाचा नाश करतात तेच धार्मिक पुरुष असतात. ॥ ४ ॥