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मारे अ॒स्मद्वि मु॑मुचो॒ हरि॑प्रिया॒र्वाङ् या॑हि। इन्द्र॑ स्वधावो॒ मत्स्वे॒ह॥

English Transliteration

māre asmad vi mumuco haripriyārvāṅ yāhi | indra svadhāvo matsveha ||

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Pad Path

मा। आ॒रे। अ॒स्मत्। वि। मु॒मु॒चः॒। हरि॑ऽप्रिय। आ॒र्वाङ्। या॒हि॒। इन्द्र॑। स्व॒धा॒ऽवः॒। मत्स्व॑। इ॒ह॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:41» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:4» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (हरिप्रिय) हरनेवालों को प्रसन्न करनेवाले (इन्द्र) ऐश्वर्य्य में युक्त (स्वधावः) बहुत अन्नादि वस्तुओं से पूर्ण आप (अस्मत्) हम लोगों से (आरे) समीप वा दूर देश में (मा) मत (वि, मुमुचः) त्याग करिये (अर्वाङ्) नीचे के स्थान को जाते हुए (याहि) जाइये और (इह) इस संसार में (मत्स्व) आनन्द करिये ॥८॥
Connotation: - हे मित्रजनों ! आप लोग हम लोगों से दूर वा समीप स्थान में वर्त्तमान हुए हम लोगों का कल्याण करो और प्रीति का त्याग मत करो और हम लोग भी आप लोगों में ऐसा ही वर्त्ताव करें, इस प्रकार परस्पर वर्त्ताव करके इस संसार में सुखी होवें ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे हरिप्रियेन्द्र ! स्वधावस्त्वमस्मदारे मा वि मुमुचोऽर्वाङ् याहीह मत्स्व ॥८॥

Word-Meaning: - (मा) निषेधे (आरे) समीपे दूरे वा (अस्मत्) (वि) (मुमुचः) मोचयेः (हरिप्रिय) यो हरीन् हरणशीलान् प्रीणाति तत्सम्बुद्धौ (अर्वाङ्) अर्वाचीनं देशं गच्छन् (याहि) गच्छ (इन्द्र) ऐश्वर्य्ययुक्त (स्वधावः) बह्वन्नादिप्राप्त (मत्स्व) आनन्द (इह) अस्मिञ्जगति ॥८॥
Connotation: - हे मित्रजना ! यूयमस्मद्दूरे समीपे वा स्थिताः सन्तोऽस्माकं प्रियमावरत प्रीत मा त्यजत वयमपि युष्मासु तथा वर्त्तेम ह्येवं परस्परं वर्त्तमानं कृत्वेह सुखिनो भवेम ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे मित्रांनो! तुम्ही आमच्यापासून दूर किंवा जवळ राहून आमचे कल्याण करा व प्रेमाचा त्याग करू नका. आम्हीही तुमच्याशी अशाच प्रकारचे वर्तन करावे. या प्रकारे परस्पर वागून या जगात सुखी व्हावे. ॥ ८ ॥