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स॒त्तो होता॑ न ऋ॒त्विय॑स्तिस्ति॒रे ब॒र्हिरा॑नु॒षक्। अयु॑ज्रन्प्रा॒तरद्र॑यः॥

English Transliteration

satto hotā na ṛtviyas tistire barhir ānuṣak | ayujran prātar adrayaḥ ||

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Pad Path

स॒त्तः। होता॑। नः॒। ऋ॒त्वियः॑। ति॒स्ति॒रे। ब॒र्हिः। आ॒नु॒षक्। अयु॑ज्रन्। प्रा॒तः। अद्र॑यः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:41» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:3» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - जो (सत्तः) बैठा हुआ (होता) ग्रहण करनेवाला और (ऋत्वियः) जो ऋतु को योग्य होता वा (आनुषक्) अनुकूलता के साथ मिलता ये (नः) हम लोगों के लिये (बर्हिः) उत्तम आसन वा वस्तु को (अद्रयः) मेघों के सदृश (प्रातः) प्रातःकाल में (अयुज्रन्) युक्त करते हैं और (तिस्तिरे) वस्त्रों से आच्छादन करते हैं, वे क्रियारूप यज्ञ करने को योग्य हैं ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रभातकाल से मेघ सूर्य्य के प्रकाश का आच्छादन करके छाया को उत्पन्न करते हैं, वैसे ही क्रियाओं को जाननेवाले लोग वस्त्र आदि पदार्थों से शरीरों को ढाँप के अनुकूलता से सुख को उत्पन्न करते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यः सत्तो होतर्त्विय आनुषक् सन्नोऽस्मान् बर्हिरद्र्यः प्रातरयुज्रन्निव तिस्तिरे ते क्रियायज्ञं कर्त्तुमर्हन्ति॥२॥

Word-Meaning: - (सत्तः) निषण्णः (होता) आदाता (नः) अस्मान् (ऋत्वियः) य ऋतुमर्हति सः (तिस्तिरे) स्तृणात्याच्छादयति (बर्हिः) उत्तममासनं वस्तु वा (आनुषक्) य आनुकूल्यं सचति समवैति सः (अयुज्रन्) युञ्जन्ति (प्रातः) (अद्रयः) मेघाः ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा प्रभातकालीना मेघाः सूर्य्यप्रकाशमाच्छाद्य छायां जनयन्ति तथैव क्रियाविदो जना वस्त्रादिपदार्थैः शरीराण्याच्छाद्याऽऽनुकूल्येन सुखं जनयन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे प्रातःकालीन मेघ सूर्याच्या प्रकाशाला आच्छादित करून छाया उत्पन्न करतात तसेच शिल्प इ. क्रिया जाणणारे लोक वस्त्र इत्यादी पदार्थांनी शरीराला आच्छादित करून अनुकूलतेने सुख उत्पन्न करतात. ॥ २ ॥