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इन्द्र॒ सोमाः॑ सु॒ता इ॒मे तव॒ प्र य॑न्ति सत्पते। क्षयं॑ च॒न्द्रास॒ इन्द॑वः॥

English Transliteration

indra somāḥ sutā ime tava pra yanti satpate | kṣayaṁ candrāsa indavaḥ ||

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Pad Path

इन्द्र॑। सोमाः॑। सु॒ताः। इ॒मे। तव॑। प्र। य॒न्ति॒। स॒त्ऽप॒ते॒। क्षय॑म्। च॒न्द्रासः॑। इन्द॑वः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:40» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:1» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (सत्पते) सत्पुरुषों के रक्षा करने और (इन्द्र) सम्पूर्ण ओषधियों की विद्या के जाननेवाले राजन् ! जो (इमे) ये (चन्द्रासः) आनन्दकारक (इन्दवः) गीले (सुताः) उत्तमप्रकार से पाक आदि संस्कार से युक्त (सोमाः) ओषधी आदि पदार्थ (तव) आपके (क्षयम्) रहने के स्थान को (प्र, यन्ति) प्राप्त होते हैं, उनका आप सेवन करो ॥४॥
Connotation: - हे राजन् ! जितना आपको राज्य का भाग लेना चाहिये, उतना ही ग्रहण कर भोग करिये, न अधिक न न्यून, ऐसा करने से कभी नहीं आपकी हानि होगी ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे सत्पते इन्द्र राजन् ! य इमे चन्द्रास इन्दवः सुताः सोमास्तव क्षयं प्रयन्ति ताँस्त्वं सेवस्व ॥४॥

Word-Meaning: - (इन्द्र) सकलौषधिविद्यावित् (सोमाः) ओषध्यादयः पदार्थाः (सुताः) सुविचारेणाऽभिसंस्कृताः (इमे) (तव) (प्र) (यन्ति) प्राप्नुवन्ति सत्पते (सतां) रक्षक (क्षयम्) निवासस्थानम् (चन्द्रासः) आह्लादकराः (इन्दवः) सार्द्राः ॥४॥
Connotation: - हे राजन् ! यावान् राज्यादंशो भवता ग्रहीतव्यस्तावन्तं गृहीत्वा भुङ्क्ष्व नाऽधिकं न न्यूनमेवं कृतेन न कदाचिद्भवतः क्षतिर्भविष्यति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा! जितका तुझा राज्याचा भाग घ्यावयाचा आहे तितकाच ग्रहण करून भोग. अधिक किंवा न्यून नको. असे करण्याने तुझी कधीही हानी होणार नाही. ॥ ४ ॥