इन्द्र॑ त्वा वृष॒भं व॒यं सु॒ते सोमे॑ हवामहे। स पा॑हि॒ मध्वो॒ अन्ध॑सः॥
indra tvā vṛṣabhaṁ vayaṁ sute some havāmahe | sa pāhi madhvo andhasaḥ ||
इन्द्र॑। त्वा॒। वृ॒ष॒भम्। व॒यम्। सु॒ते। सोमे॑। ह॒वा॒म॒हे॒। सः। पा॒हि॒। मध्वः॑। अन्ध॑सः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब तृतीयाष्टक के तृतीयाध्याय का आरम्भ तथा तृतीय मण्डल में नव ऋचावाले चालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राज प्रजा के विषय को कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ राजप्रजाविषयमाह।
हे इन्द्र ! वयं मध्वोऽन्धसः सुते सोमे यं वृषभं त्वा हवामहे स त्वमस्मान् पाहि ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात राजा व प्रजेच्या गुणवर्णनाने या सूक्ताच्या अर्थाचा पूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणावे.