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आ या॑ह्यग्ने समिधा॒नो अ॒र्वाङिन्द्रे॑ण दे॒वैः स॒रथं॑ तु॒रेभिः॑। ब॒र्हिर्न॒ आस्ता॒मदि॑तिः सुपु॒त्रा स्वाहा॑ दे॒वा अ॒मृता॑ मादयन्ताम्॥

English Transliteration

ā yāhy agne samidhāno arvāṅ indreṇa devaiḥ sarathaṁ turebhiḥ | barhir na āstām aditiḥ suputrā svāhā devā amṛtā mādayantām ||

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Pad Path

आ। या॒हि॒। अ॒ग्ने॒। स॒म्ऽइ॒धा॒नः। अ॒र्वाङ्। इन्द्रे॑ण। दे॒वैः। स॒ऽरथ॑म्। तु॒रेभिः॑। ब॒र्हिः। नः॒। आस्ता॑म्। अदि॑तिः। सु॒ऽपु॒त्रा। स्वाहा॑। दे॒वाः। अ॒मृताः॑। मा॒द॒य॒न्ता॒म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:4» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:23» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) वह्नि के सामने प्रकाशमान विद्वान् ! जैसे (समिधानः) प्रदीप्त (अर्वाङ्) और नीचे जानेवाला (इन्द्रेण) पवन वा बिजुली और (देवैः) दिव्य (तुरेभिः) शीघ्रगामी घोड़ों के साथ (सरथम्) रथ के सहित वर्त्तमान (बर्हिः) जो अन्तरिक्ष (न) उसके समान व्याप्त होता है वैसे आप (आ, याहि) आओ वा जैसे (सुपुत्रा) सुन्दर पुत्रोंवाली (अदितिः) माता सुखिनी (आस्ताम्) हो वैसे (अमृताः) आत्मस्वरूप से नित्य (देवाः) दिव्य विद्यावाले विद्वान् जन हम लोगों को (स्वाहा) उत्तम अन्न वा सुशिक्षित वाणी से (मादयन्ताम्) हर्षित करें ॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे बिजुली आदि पदार्थों से चलाये हुए रथ आदि यान भू, समुद्र और अन्तरिक्ष में शीघ्र जाते हैं, वैसे विद्वानों की शिक्षा से विद्याओं को प्राप्त होकर शीघ्र गुरुकुल जाकर और ब्रह्मचारियों को प्राप्त होकर सबको आनन्द करें ॥११॥ इस सूक्त में वह्नि विद्वान् और वाणी के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ संगति समझनी चाहिये ॥११॥ यह चौथा सूक्त और तेईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने यथा समिधानोऽर्वाङिन्द्रेण देवैः तुरेभिः सह सरथं बर्हिर्न व्याप्तो भवति तथा त्वमायाहि यथा सुपुत्रा अदितिः सुखिन्यास्तां तथाऽमृता देवा अस्मान् स्वाहा मादयन्ताम् ॥११॥

Word-Meaning: - (आ) (याहि) आगच्छ (अग्ने) वह्निवत्प्रकाशमान विद्वन् (समिधानः) प्रदीप्तः (अर्वाङ्) योऽर्वागधोऽञ्चति गच्छति सः (इन्द्रेण) वायुना विद्युता वा (देवैः) दिव्यैः (सरथम्) रथेन सह वर्त्तमानम् (तुरेभिः) शीघ्रगामिभिरश्वैः (बर्हिः) अन्तरिक्षम् (न) इव (आस्ताम्) उपविशतु (अदितिः) माता (सुपुत्रा) शोभनाः पुत्रा यस्याः सा (स्वाहा) शोभनान्नेन सुशिक्षितया वाचा वा (देवाः) दिव्यविद्याः (अमृताः) आत्मस्वरूपेण नित्याः (मादयन्ताम्) हर्षयन्तु ॥११॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथा विद्युदादिपदार्थैश्चालितानि यानानि भूसमुद्राऽन्तरिक्षेषु सद्यो गच्छन्ति तथा विद्वच्छिक्षया विद्याः प्राप्य सद्यो गुरुकुलं गत्वा ब्रह्मचारिण आगत्य सर्वानानन्दयन्त्विति ॥११॥। अत्र वह्निविद्वद्वाणीगुणवर्णनादेतर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुर्थं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जशी विद्युतद्वारे चालविलेली वाहने भूमीr, समुद्र व अंतरिक्षात जातात तसे गुरुकुलात जाऊन विद्वानांकडून विद्या प्राप्त करून परत येऊन सर्वांना ब्रह्मचाऱ्यांनी आनंदित करावे. ॥ ११ ॥