स॒मित्स॑मित्सु॒मना॑ बोध्य॒स्मे शु॒चाशु॑चा सुम॒तिं रा॑सि॒ वस्वः॑। आ दे॑व दे॒वान्य॒जथा॑य वक्षि॒ सखी॒ सखी॑न्त्सु॒मना॑ यक्ष्यग्ने॥
samit-samit sumanā bodhy asme śucā-śucā sumatiṁ rāsi vasvaḥ | ā deva devān yajathāya vakṣi sakhā sakhīn sumanā yakṣy agne ||
स॒मित्ऽस॑मित्। सु॒ऽमनाः॑। बो॒धि॒। अ॒स्मे इति॑। शु॒चाऽशु॑चा। सु॒ऽम॒तिम्। रा॒सि॒। वस्वः॑। आ। दे॒व॒। दे॒वान्। य॒जथा॑य। व॒क्षि॒। सखा॑। सखी॑न्। सु॒ऽमनाः॑। य॒क्षि॒। अ॒ग्ने॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब ग्यारह ऋचावाले चौथे सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के विषय को कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ विद्वद्विषयमाह।
हे अग्ने यथा समित्समिच्छुचाशुचा पावको बोधि तथाऽध्यापनोपदेशाभ्यामस्मे सुमतिं वस्वश्च रासि। हे देव सुमना सन्नाहुतीनामग्निरिव यजथाय देवानावक्षि सुमनाः सखा सन् सखीन् यक्षि तस्मात्सत्कर्त्तव्योऽसि ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात वह्नि, विद्वान व वाणीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.