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स॒मित्स॑मित्सु॒मना॑ बोध्य॒स्मे शु॒चाशु॑चा सुम॒तिं रा॑सि॒ वस्वः॑। आ दे॑व दे॒वान्य॒जथा॑य वक्षि॒ सखी॒ सखी॑न्त्सु॒मना॑ यक्ष्यग्ने॥

English Transliteration

samit-samit sumanā bodhy asme śucā-śucā sumatiṁ rāsi vasvaḥ | ā deva devān yajathāya vakṣi sakhā sakhīn sumanā yakṣy agne ||

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Pad Path

स॒मित्ऽस॑मित्। सु॒ऽमनाः॑। बो॒धि॒। अ॒स्मे इति॑। शु॒चाऽशु॑चा। सु॒ऽम॒तिम्। रा॒सि॒। वस्वः॑। आ। दे॒व॒। दे॒वान्। य॒जथा॑य। व॒क्षि॒। सखा॑। सखी॑न्। सु॒ऽमनाः॑। य॒क्षि॒। अ॒ग्ने॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:4» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:22» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ग्यारह ऋचावाले चौथे सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान विद्वन् ! आप जैसे (समित्समित्) प्रतिसमिध (शुचाशुचा) शुच् शुच् प्रत्येक होम के साधन से अग्नि (बोधि) प्रबुद्ध होता जाना जाता है वैसे पढ़ाने और उपदेश करने से (अस्मे) हमलोगों के लिये (सुमतिम्) उत्तम बुद्धि और (वस्वः) धनों को (रासि) देते हैं। हे (देव) विद्वन् ! (सुमनाः) सुन्दर मनवाले होते हुए आप आहुतियों को अग्नि के समान (यजथाय) समागम के लिये (देवान्) विद्वानों को (आ, वक्षि) प्राप्त करते हो (सुमनाः) सुन्दर हृदयवाले (सखा) मित्र होते हुए आप (सखीन्) मित्र वर्गों को (यक्षि) सङ्ग करते हो। उक्त कारण से सत्कार करने योग्य हो ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! जैसे समिधों वा होमने योग्य घृतादि पदार्थ से अग्नि बढ़ता है, वैसे अध्यापन और उपदेश से मनुष्यों की बुद्धि बढ़ानी चाहिये और आप लोग सदैव मित्र होकर सबको विद्वान् और श्रीमान् कीजिये ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने यथा समित्समिच्छुचाशुचा पावको बोधि तथाऽध्यापनोपदेशाभ्यामस्मे सुमतिं वस्वश्च रासि। हे देव सुमना सन्नाहुतीनामग्निरिव यजथाय देवानावक्षि सुमनाः सखा सन् सखीन् यक्षि तस्मात्सत्कर्त्तव्योऽसि ॥१॥

Word-Meaning: - (समित्समित्) प्रतिसमिधम् (सुमनाः) शोभनं मनो यस्य सः (बोधि) बुध्यसे (अस्मे) अस्मभ्यम् (शुचाशुचा) होमसाधनेन (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (रासि) ददासि (वस्वः) वसूनि धनानि (आ) (देव) विद्वन् (देवान्) विदुषः (यजथाय) समागमाय (वक्षि) वहसि (सखा) मित्रः सन् (सखीन्) सुहृदः (सुमनाः) सुहृत्सन् (यक्षि) सङ्गच्छसे (अग्ने) अग्निरिव प्रकाशमान ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो यथा समिद्भिर्घृताद्येन हविषा अग्निर्वर्धते तथाऽध्यापनोपदेशाभ्यां मनुष्याणां प्रज्ञा वर्धनीया सदैव सुहृदो भूत्वा सर्वान् विदुषः श्रीमतश्च सम्पादयत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात वह्नि, विद्वान व वाणीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो! समिधा, घृत इत्यादी पदार्थांनी होमातील अग्नी जसा प्रज्वलित होतो तसे अध्यापन व उपदेश यांनी माणसांची बुद्धी वाढविली पाहिजे व स्वतः सुहृद बनून सर्वांना सदैव विद्वान व श्रीमंत केले पाहिजे. ॥ १ ॥