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ज्योति॑र्वृणीत॒ तम॑सो विजा॒नन्ना॒रे स्या॑म दुरि॒ताद॒भीके॑। इ॒मा गिरः॑ सोमपाः सोमवृद्ध जु॒षस्वे॑न्द्र पुरु॒तम॑स्य का॒रोः॥

English Transliteration

jyotir vṛṇīta tamaso vijānann āre syāma duritād abhīke | imā giraḥ somapāḥ somavṛddha juṣasvendra purutamasya kāroḥ ||

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Pad Path

ज्योतिः॑। वृ॒णी॒त॒। तम॑सः। वि॒ऽजा॒नन्। आ॒रे। स्या॒म॒। दुः॒ऽइ॒तात्। अ॒भीके॑। इ॒माः। गिरः॑। सो॒म॒ऽपाः॒। सो॒म॒ऽवृ॒द्ध॒। जु॒षस्व॑। इ॒न्द्र॒। पु॒रु॒ऽतम॑स्य। का॒रोः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:39» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (सोमवृद्ध) विद्यारूप ऐश्वर्य्य से वृद्ध और (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्ययुक्त (सोमपाः) ऐश्वर्य्य की रक्षा करनेवाले ! आप (पुरुतमस्य) अत्यन्त बहुत विद्या से युक्त (कारोः) शिल्पीजन की जो (इमाः) उन (गिरः) वाणियों का (जुषस्व) सेवन करो और जैसे (विजानन्) विशेष प्रकार से जानते हुए आप हम लोगों से (आरे) दूरस्थल और (अभीके) समीप स्थल में (दुरितात्) दुष्ट आचरण से पृथक् होकर श्रेष्ठ आचरण और (तमसः) अविद्या से पृथक् होकर विद्या और (ज्योतिः) प्रकाश के समान विद्या को (वृणीत) स्वीकार करैं, वैसे इन आपकी उन वाणियों का सेवन करके हम लोग विद्वान् होवें ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग पाप के आचरण से पृथक् होकर धर्म के आचरण और अविद्या से पृथक् होकर विद्या का ग्रहण करके आत्मसम्बन्धी ज्ञान और शिल्प क्रिया कौशल का सेवन करते हैं, वैसे ही आप लोग भी सेवन करनेवाले हूजिये और हम सब लोग दूर और समीप में वर्त्तमान हुए भी मित्रता का त्याग नहीं करें ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

हे सोमवृद्धेन्द्र सोमपा त्वं पुरुतमस्य कारो इमाः गिर जुषस्व यथा विजानञ्ज्योतिरस्माकमारेऽभीके दुरितात्पृथग् भूत्वा तमसो ज्योतिर्वृणीत तथैतस्यैताः सेवित्वा वयं विद्वांसः स्याम ॥७॥

Word-Meaning: - (ज्योतिः) प्रकाशमिव विद्याम् (वृणीत) स्वीकुर्य्यात् (तमसः) अन्धकारादविद्याया इव (विजानन्) विशेषेण विदन् (आरे) दूरे (स्याम) (दुरितात्) दुष्टाचाराच्छ्रेष्ठाचारात् (अभीके) समीपे (इमाः) (गिरः) वाचः (सोमपाः) सोममैश्वर्यं पाति। अत्र कर्त्तरि क्विप्। (सोमवृद्ध) सोमेन विद्यैश्वर्येण वृद्धस्तत्सम्बुद्धौ (जुषस्व) सेवस्व (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (पुरुतमस्य) अतिशयेन बहुविद्यायुक्तस्य (कारोः) कारकरस्य शिल्पिनः ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्या यथा वयं पापाचरणात् पृथग् भूत्वा धर्माचरणमविद्यायाः पृथग् भूत्वा विद्यां वरित्वाऽऽत्मबोधं शिल्पक्रियाकौशलं च जुषामहे तथैव यूयमपि भवत, सर्वे वयं दूरे समीपे च स्थिता अपि मैत्रीं न जह्याम ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जसे आम्ही पापाच्या आचरणापासून दूर होऊन धर्माचे आचरण करतो व अविद्येपासून पृथक होऊन विद्येचे ग्रहण करून आत्म्यासंबंधीचे ज्ञान प्राप्त करून शिल्प-क्रिया-कौशल्याचे सेवन करतो तसेच तुम्हीही व्हा. आपण सर्वांनी दूर व समीप असलेल्या मैत्रीचा त्याग करता कामा नये. ॥ ७ ॥